छत्तीसगढ़ के किसान आंवला की खेती कैसे और किस तकनीक से करें, जिससे अधिक उत्पादन के साथ ही किसानों को लाभ हो सके. आंवले का ऐसी कौन कौन सी किस्में हैं, जिसको लगाकर अधिक पैदावार किसान ले सकते हैं. आंवला की खेती करते समय किस तरह की सावधानी बरतनी चाहिए. बंजर या मरुभूमि की जरूरत होगी या फिर भाटा जमीन पर आंवला की खेती कर सकते हैं. आइए जानें कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ घनश्याम दास साहू इस संबंध में क्या सुझाव देते हैं.
आईजीकेवी रायपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर घनश्याम दास साहू ने बताया कि अगर बंजर भूमि को उपजाऊ जमीन बनाना है, तो आंवला की खेती जरूर करनी चाहिए. आंवला बहूवर्षीय फसल होने की वजह से बढ़वार बहुत अच्छी होती है. आंवला की खेती करते समय ध्यान रखें कि कतार से कतार की दूरी 8 मीटर और पौध से पौधे की दूरी 6 मीटर होनी चाहिए.
आंवला की खेती में सावधानी के तौर पर किसानों को फ्रांसिस किस्म जिसे हाथीझूल जो किस्म है, इसमें परागण की प्रक्रिया बहुत अधिक होती है. ऐसे में किसान जब भी आंवाला की खेती करते हैं तो जोड़ियों में करनी चाहिए. किसान 10 आंवला का पेड़ लगाते हैं तो एक फ्रांसिस किस्म का आंवला होना चाहिए या फिर नदिया के पार आंवला जैसी किस्म को भी लगा सकते हैं.
आंवला के पेड़ पर इंडरबेला जैसे कीटनाशक का अटैक होता है, जो तना या छिलका खाने वाली होती है. इसके साथ ही आंवला में मिलीबक का अटैक भी होता है. इन दोनों का अटैक विशेष तौर पर ठंड के दिनों में देखने को मिलता है. ऐसे में प्रदेश के किसानों को कीटों के अटैक से बचने के लिए नीम तेल का उपयोग करना चाहिए.
छत्तीसगढ़ के लिए प्रमाणित किस्म बनारसी मानी गई है. इसके साथ ही कृष्णा, कंचन और चकैया जैसी किस्म भी प्रचलित है. इसके साथ ही नरेंद्र आवाला 7 और नरेंद्र आवाला 10 भी प्रचलित किस्म में मानी गई हैं. देसी आंवला में कसैलापन ज्यादा होता है. लेकिन जिन चार किस्में यहां बताई गई है, उसमें कसेलापन नहीं होता है.