मखाना एक जलीय फ़सल है. मखाना की खेती बिहार और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में की जाती है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, त्रिपुरा, और मणिपुर में मखाना प्राकृतिक रूप से उगता है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी मखाने की खेती की शुरुआत इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के धमतरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा की गई थी. ड्राइफ्रूट में शामिल मखाना की खेती का प्रयोग धमतरी जिले से प्रारम्भ कर किसानों के खेतों में भी लगाने का प्रयास किया गया। यह पानी वाले स्थानों व दलदली क्षेत्रों, बांधों के तराई में खूब मुनाफा देने वाली फसल है। एक एकड़ में मखाना लगाने पर एक फसल में करीब 90 हजार रुपए से ज्यादा शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है। इसमें धान की फसल की अपेक्षा मेहनत थोड़ी ज्यादा है लेकिन इसमें नुकसान की आशंका लगभग शून्य व अन्य खर्च भी बेहद कम हैं। एक बार लगाने के बाद फसल तैयार होने पर मखाना निकालने के लिए जाना पड़ता है। मखाना की फसल आने के बाद यदि बीज से मखाना निकालकर बेचा जाता है तो फायदे को तीन गुना तक बढ़ाया जा सकता है। फायदा धान की अपेक्षा कई गुना हो जाता है। मखाने की फसल को प्रोत्साहित करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र चंद्राकर ने अपने आरंग विकासखंड के ग्राम लिंगाड़िह में 30 एकड़ में मखाने कि खेती प्रारम्भ की है और सफलतापूर्वक उत्पादन ले रहे हैं और साथ ही साथ मखाना के प्रसंस्करण भी कर रहे हैं. डॉ.चंद्राकर को पिछले 3 साल से बिहार में आयोजित होने वाले राष्ट्रीय मखाना महोत्सव में अतिथि के रूप में बुलाया जा रहा है. मान.कृषि मंत्री जी के द्वारा भी मखाना का उपयोग स्वयं के द्वारा किया जाता है एवं वे मखाने के गुणों से भी भली भांति वाकिफ हैं. इस संदर्भ में माननीय कृषि मंत्री जीने निर्देश दिए हैं कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा दिनांक 22 से 25 अक्टूबर तक आयोजित होने वाले किसान मेले में मखाना प्रसंस्करण एवं उत्पादन का संजीव प्रदर्शनी लगाने हेतु निर्देश दिए गए. माननीय मंत्री जी द्वारा यह भी आश्वासन दिया गया कि अवलोकन हेतु माननीय मुख्यमंत्री एवं अन्य अतिथियों को भी मखाना की खेती की प्रदर्शनी के अवलोकन हेतु आग्रह का आश्वासन भी दिए.
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