जानिए सुआ नृत्य से जुड़ी रोचक बातें, दीवाली से पहले शुरू होने का क्या है कारण?

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दीपावली पर्व से पहले सुआ नाचने की छत्तीसगढ़ी परंपरा है। महिलाओं और स्कूली बच्चों की टीम टोली गली-मोहल्लों में घूम-घूम सुआ सुआ नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं। बदले में इन्हें लोगों द्वारा -द्वारा खुशी खुशी उपहार स्वरूप भेंट भी दी भी दी जा रही है।

दीप पर्व खुशियां लेकर आता है। पर्व की तैयारी लगभग पखवाड़े भर पहले शुरू हो जाती है। इन दिनों शहर व गांवों के गली-मोहल्लों में घूम-घूमकर सुआ नृत्य प्रस्तुत कर रही बच्चों व महिलाओं की टोली को देखा जा सकता है। सुआ नृत्य की परंपरा कब से चली आ रही है

छत्तीसगढ़ में सुआ नृत्य की परंपरा कब से प्रारंभ हुई इसकी कोई प्रमाणित जानकारी नहीं है और न ही इसका कोई लिखित अभिलेख है। माना जाता है युवतियां अपने ‌मन की बातों को सुआ पक्षी के सामने गाती रही होंगी। यह बातें धीरे धीरे प्रचलन में आ गए होंगे और आगे चलकर यह सुआ गीत और फिर गीत के साथ नृत्य में बदल गया।

पहले नहीं था मनोरंजन का कोई साधन

आधुनिक समाज में लोगों के लिए टीवी, सिनेमा मोबाइल गेम्स, कंप्यूटर गेम्स, खेल सामग्री, उद्यान, क्लब इत्यादि अनेक मनोरंजन के साधन उपलब्ध है लेकिन प्राचीन काल में ऐसा कोई साधन नहीं होता था । सुआ ही एक ऐसी पक्षी है जो बहुत सुंदर और हू-ब-हू मनुष्य की भाषा का नकल करती है। इसलिए पहले घर घर सुआ पालते थे। इस तरह युवतियां अपने मन की बात को गीत के रूप में प्रकट करने लगी। जो आज सुआ नृत्य के रूप में जाना जाता है।

कैसे किया जाता है सुआ नृत्य

दीपावली पर्व से पहले सुआ नाचने की छत्तीसगढ़ी परंपरा है। महिलाओं और स्कूली बच्चों की टीम टोली गली-मोहल्लों में घूम-घूम सुआ सुआ नृत्य प्रस्तुत कर रही हैं। बदले में इन्हें लोगों द्वारा -द्वारा खुशी खुशी उपहार स्वरूप भेंट भी दी भी दी जा रही है।

दीप पर्व खुशियां लेकर आता है। पर्व की तैयारी लगभग पखवाड़े भर पहले शुरू हो जाती है। इन दिनों शहर व गांवों के गली-मोहल्लों में घूम-घूमकर सुआ नृत्य प्रस्तुत कर रही बच्चों व महिलाओं की टोली को देखा जा सकता है। सुआ नृत्य की परंपरा कब से चली आ रही है

छत्तीसगढ़ में सुआ नृत्य की परंपरा कब से प्रारंभ हुई इसकी कोई प्रमाणित जानकारी नहीं है और न ही इसका कोई लिखित अभिलेख है। माना जाता है युवतियां अपने ‌मन की बातों को सुआ पक्षी के सामने गाती रही होंगी। यह बातें धीरे धीरे प्रचलन में आ गए होंगे और आगे चलकर यह सुआ गीत और फिर गीत के साथ नृत्य में बदल गया।

पहले नहीं था मनोरंजन का कोई साधन

आधुनिक समाज में लोगों के लिए टीवी, सिनेमा मोबाइल गेम्स, कंप्यूटर गेम्स, खेल सामग्री, उद्यान, क्लब इत्यादि अनेक मनोरंजन के साधन उपलब्ध है लेकिन प्राचीन काल में ऐसा कोई साधन नहीं होता था । सुआ ही एक ऐसी पक्षी है जो बहुत सुंदर और हू-ब-हू मनुष्य की भाषा का नकल करती है। इसलिए पहले घर घर सुआ पालते थे। इस तरह युवतियां अपने मन की बात को गीत के रूप में प्रकट करने लगी। जो आज सुआ नृत्य के रूप में जाना जाता है।

कैसे किया जाता है सुआ नृत्य
सुआ यानी तोता एक शाकाहारी पक्षी है जो हू-ब-हू मनुष्य की जुबान बोल सकता है। इसीलिए बालिकाएं इसे प्रतीक मानकर गीत गाकर नृत्य करती है जिसमें धार्मिक, सामाजिक व संदेश परक गीत गाए जाते हैं ।

इस नृत्य में युवतियां कम से कम पांच छः से अधिक के समूह में गोल घेरा में खड़ी होती है। जिसमें आधी बालिकाएं गाती है और आधी दोहराते हुए नृत्य करती है ।इस दौरान बालिकाओं द्वारा दोनों हाथों से एक लय में थपोल या ताली बजाया जाता है जो वाद्ययंत्र का काम करती है।

दीपावली त्यौहार के समय मनाया जाता है सुआ म होत्सव
दीपावली पर्व के समय ग्रामीण बालिकाओं और महिलाओं सुआ महोत्सव मनाया जाता है । यह ऐसा नृत्य है जिसमें किसी तरह के वाद्ययंत्र का उपयोग नहीं होता है। यह गीत सिर्फ बालिकाओं या महिलाओं द्वारा ही गाकर नृत्य किया जाता है। सुआ नृत्य समूह में ही किया जाता है। यह एकल नृत्य नहीं है।

नृत्य के पश्चात एक सदस्य विदाई मांगती है। जिसमें घर के मालकिनो द्वारा बड़े श्रद्धा से धन धान्य देकर ससम्मान विदाई देती है। वहीं बालिकाएं उस परिवार की धन धान्य सुख समृद्धि व बेटा बेटी की सुखमय जीवन की मंगल कामना करते हुए आशीष देती है।
कुंवारी कन्याओं को देवी स्वरूप मानने के कारण उनके द्वारा दी आशीष को भी वरदान स्वरुप मानते रहे होंगे । आज सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रचा बसा है।

सुआ यानी तोता एक शाकाहारी पक्षी है जो हू-ब-हू मनुष्य की जुबान बोल सकता है। इसीलिए बालिकाएं इसे प्रतीक मानकर गीत गाकर नृत्य करती है जिसमें धार्मिक, सामाजिक व संदेश परक गीत गाए जाते हैं ।

इस नृत्य में युवतियां कम से कम पांच छः से अधिक के समूह में गोल घेरा में खड़ी होती है। जिसमें आधी बालिकाएं गाती है और आधी दोहराते हुए नृत्य करती है ।इस दौरान बालिकाओं द्वारा दोनों हाथों से एक लय में थपोल या ताली बजाया जाता है जो वाद्ययंत्र का काम करती है।

दीपावली त्यौहार के समय मनाया जाता है सुआ महोत्सव

दीपावली पर्व के समय ग्रामीण बालिकाओं और महिलाओं सुआ महोत्सव मनाया जाता है । यह ऐसा नृत्य है जिसमें किसी तरह के वाद्ययंत्र का उपयोग नहीं होता है। यह गीत सिर्फ बालिकाओं या महिलाओं द्वारा ही गाकर नृत्य किया जाता है। सुआ नृत्य समूह में ही किया जाता है। यह एकल नृत्य नहीं है।

नृत्य के पश्चात एक सदस्य विदाई मांगती है। जिसमें घर के मालकिनो द्वारा बड़े श्रद्धा से धन धान्य देकर ससम्मान विदाई देती है। वहीं बालिकाएं उस परिवार की धन धान्य सुख समृद्धि व बेटा बेटी की सुखमय जीवन की मंगल कामना करते हुए आशीष देती है।

कुंवारी कन्याओं को देवी स्वरूप मानने के कारण उनके द्वारा दी आशीष को भी वरदान स्वरुप मानते रहे होंगे । आज सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ की संस्कृति में रचा बसा है।

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