“समस्या की जड़: फैक्ट्री का दूषित जल ”
महासमुंद के नगर पंचायत तुमगांव में संचालित वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से निकलने वाली बदबूदार दूषित जल: ग्रामीणों के जीवन पर मंडराता खतरा।
विकास की अंधी दौड़ में अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी हो जाती है, और इसका खामियाजा वहां रहने वाले सीधे-सादे लोग भुगतते हैं। ऐसा ही एक मामला तुमगांव में स्थापित वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से निकलने वाले बदबूदार और विषैले अपशिष्ट जल का है, जिससे तुमगांव नगर पंचायत एवं आसपास के गांवों के लोग न केवल परेशान हैं, बल्कि गंभीर बीमारियों के खतरे के साए में भी जी रहे हैं।
महासमुंद 3 जून 2025 / तुमगांव में संचालित वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से तंग आकर अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व ) महासमुंद को ज्ञापन सौंपते हुए नगर पंचायत
तुमगांव के अध्यक्ष श्री बलराम कांत साहू जी ने नगर के आम नागरिकों के साथ वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) के सामने धरना प्रदर्शन पर बैठे थे। धरना प्रदर्शन में बड़ी संख्या में ग्रामीणजन एवं जनप्रतिनिधिगण उपस्थित थे।
नगर पंचायत तुमगांव के अध्यक्ष बलराम कांत साहू जी ने कड़े शब्दों में कहा कि अगर शासन प्रशासन एवं फैक्ट्री का मालिक तत्काल वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से निकलने वाली जहरीले पानी का समाधान नहीं करता तो उग्र आंदोलन किया जाएगा और उग्र प्रदर्शन के दौरान कहीं कोई अप्रिय घटना घट गई तो उसकी संपूर्ण जवाबदारी शासन प्रशासन एवं फैक्ट्री मालिक की होगी।
तुमगांव नगर पंचायत अध्यक्ष बलराम कांत साहू जी नें शासन प्रशासन से विनम्र निवेदन है किया की जनहित को देखते हुऐ तत्काल नगर वासियों विषैले पानी के प्रकोप से जो इस फैक्ट्री से निकलने वाली बदबूदार एवं विषैले पानी से परेशान हैं से निजात दिलाया जाए।
समस्या की जड़: फैक्ट्री का दूषित जल
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) दूध प्रोसेसिंग यूनिट्स अपने उत्पादन के दौरान बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल उत्पन्न करती हैं। यह जल फैक्ट्री में दूध धोने, प्रसंस्करण, बॉटलिंग आदि प्रक्रियाओं के दौरान निकलता है, जिसमें कई प्रकार के रसायन, वसा, और अन्य जैविक तत्व घुले होते हैं। उचित उपचार के बिना जब यह अपशिष्ट जल सीधे नालों या खेतों में छोड़ा जाता है, तो यह मिट्टी, जल और वायु को प्रदूषित करता है।
बदबू और स्वास्थ्य संकट
तुमगांव एवं आसपास के क्षेत्र में वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से फैली बदबू न केवल असहनीय है, बल्कि यह हवा में मौजूद हानिकारक गैसों — जैसे मीथेन, अमोनिया और सल्फर डाइऑक्साइड — के कारण स्वास्थ्य के लिए भी बेहद नुकसानदेह है। ग्रामीणों में सांस की बीमारियाँ, त्वचा रोग, आंखों में जलन, और पेट से जुड़ी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका प्रभाव सबसे अधिक पड़ रहा है।
प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी
वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से निकलने वाली दूषित जल खेतों में पहुंचने से मिट्टी की उर्वरता घट रही है। जलस्रोत — जैसे तालाब, नहरें और भूमिगत जल — भी इस जल से प्रभावित हो रहे हैं। ग्रामीणों के पीने और सिंचाई के पानी का स्रोत भी खतरे में आ गया है।
प्रशासनिक उदासीनता
स्थानीय प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निष्क्रियता भी इस समस्या को और गहरा बना रही है। कई बार शिकायतों के बावजूद न तो फैक्ट्री मालिकों पर कोई कार्रवाई होती है और न ही किसी प्रकार की निगरानी या नियंत्रण प्रणाली लागू की जाती है।
समाधान की दिशा में कदम
इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETP) की स्थापना सभी दूध फैक्ट्रियों में अनिवार्य की जानी चाहिए।
स्थानीय प्रशासन को नियमित रूप से जल और वायु की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए।
जनजागरण के माध्यम से ग्रामीणों को प्रदूषण के प्रभाव और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
कानूनी कार्रवाई कर ऐसे उद्योगों को दंडित किया जाना चाहिए जो पर्यावरणीय मानकों का पालन नहीं करते।
निष्कर्ष:
वामा डेयरी (दूध फैक्ट्री) से निकलने वाला बदबूदार दूषित जल एक गंभीर पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन चुका है। यदि इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक महसूस किया जाएगा। अब समय आ गया है कि हम सभी — शासन, समाज और उद्योग — मिलकर इस संकट का समाधान निकालें।