जिस प्रदेश में वहां की मातृभाषा को राज्य निर्माण के 25 सालों बाद भी भाषाई दर्जा न मिला हो, वहां की जनता कितनी निकृष्ट होगी!?
आप सोंचिए!
आखिर आज तक हमारे नेताओं, तथाकथित जननायकों ने, जो छत्तीसगढ़िया अस्मिता की लड़ाई का दम भरते हैं!
क्या उनके लिए भाषाई अस्मिता कोई मायने रखती है?
एक गैर राजनीतिक संगठन की महिला नेत्री हर साल भाषाई अस्मिता के लिए आयोजन करती रहीं, दिल्ली में राजभवन का दरवाजा खटखटाया, जंतरमंतर से मंतर भी फूंके पर सब व्यर्थ!
दूसरी ओर उसी संगठन के मुखिया भाषाई लड़ाई को छत्तीसगढ़ियावाद की लड़ाई से अलग बताते हैं, उन्होने हास्यास्पद तरीके से अपने जिम्मेदार संबोधन में भाषाई आंदोलनों को बेकार कह दिया!
उनका मानना था कि सत्ता पाने के बाद उसकी पार्टी भाषाई अस्मिता स्थापित कर देगी!
अरे भाई जब तुम अपने लोगों में भाषाई अस्मिता जगा ही नही पा रहे हो, तो सत्ता क्या ख़ाक पावोगे?
उसके इस बयान से सत्ता के प्रति उसकी महत्वाकांक्षा उजागर मात्र हुई!
आज कल वे गैर राजनीतिक संगठन के साथ राजनीतिक दल भी चला रहे हैं, जो अब तक कुछ खास नही कर पाए!
जिन्हें जनता इतनी जिम्मेदार समझती रही वही भाषाई अस्मिता को कम आंकने वाला निकला, यह जानकर जनता उसकी मानसीकता पर विलाप करेगी!
आज हम अपनी भाषा के लिए नही लड़ पा रहें हैं और बातें करते हैं अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए लड़ने की, आखिर हम धोखा किसे दे रहे हैं?
जो जन अपनी भाषाई अस्मिता नही बचा पा रही उनके लिए हसदेव जैसी जंगल, जमीन और स्वाभिमान बचाने की बातें सिर्फ बातें हैं!
दर असल आम छत्तीसगढ़िया हर दूसरी जगह दूसरा चेहरा लगा लेता है, यूं कहें, किसी बात के लिए गंभीर ही नही, बस जब असहनीय अत्याचार होता है बेचारा बन जाता है मगर इससे पहले बड़ी बड़ी डींगे हांकता है?
दूसरी ओर यहां की सरकारों ने कभी भी यहां की भाषाई अस्मिता को गंभीरता से नही लिया और लेते भी क्यों ज्यादातर राजनेता गैर भाषाई हैं! उनके लिए तो अच्छा ही है कि यह प्रदेश हिंदी बेल्ट का हिस्सा रहे और पूरा उत्तर भारत यहां की संसाधनों के साथ यहां की सांस्कृतिक विरासत और पारम्परिकता लुटती रहें, वे यहां की सत्ता सिंहासन पर एकाधिकार जमाये बैठे रहें, आप देखिए यहां की सत्ता, मीडिया, मंत्रालय, नौकरशाह पूरी तरह से यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे तमाम उत्तर भारतियों से पटे पड़े हैं और उनकी नज़र में आम छत्तीसगढ़िया गंवार, बेवकूफ और बिकाऊ है?
और है भी! जिन्हें अपनी भाषा, अपनी अस्मिता, स्वाभिमान, खनिज संसाधन से प्रेम ही नही वो बेवकूफ ही तो हैं!
ये लोग हमेशा लुट जाने के लिए तैयार रहते हैं शायद इसी तारतम्य में #छत्तीसगढ़िया_सबले_बढ़िया जैसी टैग लाइन बनी है?
मेरे चिर निद्रालीन प्रदेशवासियों को बुरा लगा हो तो मुझे गालियां जरूर लिख दें!
Gajendra Rath Verma ‘GRV’
PRADESHVAD.com
