शिक्षक दिवस और दीवान सर….(सच्ची कहानी)
आज शिक्षक दिवस पर मुझे मेरी नादानियां याद आ रही है, जी हां नादानियां, तब मैं 7 साल का था, बाबू जी मुझे स्कूल में भर्ती करना चाहते थे और मैं अपनी मस्ती में मगन स्कूल से दूर भागता था, तब के स्कूल आज जैसे स्कूल न थे, स्कूल याने यातनाओं का गृह ऐसा मैंने बुआ से सुन रखा था।
मैं वाकिफ था स्कूल के टेंशन से, जब भी बुआ स्कूल के लिए निकलती थीं उनका मुंह फुला रहता, दादी डाटती रहती, यानि उनको स्कूल जाने का कभी मन से मन नही हुआ।
मां सुबह से नहलाकर मुझे गोलू बना रही थी, कंधा बालों पर अरझाए मैं बुआ की गोद में आकर बैठ गया, उनकी आंखों में मस्ती दिख रही थी, अब मजा आएगा बेटा, जा…जा… स्कूल बहुत होशियारी मारता था न अब मार खाएगा मास्टर से तब पता चलेगा स्कूल क्या चीज है।
मैं चिंतित हुए जा रहा था, तभी सजा संवरा पूरन को देखकर मेरी जान में जान आई, अरे वाह वहां भी अपन साथ में मार खायेंगे।
बाबू जी चप्पल पहनते हुए, गज्जू ओ गज्जू अब चलो भी, स्कूल जा रहे हैं, फिल्म देखने नही!
मैं पूरन को देखकर, मजा आही यार…सुनकर पूरन, का मजा आही, अब्बड़ मारथे गुरूजी ह…!
मैं और पूरन साथ में मेरे और उनके बाबू जी, वो दोनों आगे आगे और हम दोनों पीछे पीछे, पूर्वाग्रहों से ग्रस्त मन में डर लेकर खामोशी ओड़े स्कूल की ओर बढ़ रहे थे।
तब खरोरा प्राथमिक शाला में दीवान गुरूजी हेडमास्टर हुआ करते थे और उनका कार्यालय स्कूल के कमरे से बाहर खुले आसमान में सजता था, मेरे बाबू जी पूरन के बाबू जी के साथ हेडमास्टर के पास बैठे हुए थे और हम दोनों स्कूल के मैदान पर अपना करतब दिखा रहे थे, पत्थर के टुकड़ों को आसमान में उछाल कर किसका कितना दूर गिरता वाला खेल था, पता नही कब मेरी दिशा बदली और पत्थर सीधे दीवान सर के माथे पर जा गिरा फिर क्या था, अबे कौन है दीवान सर मुड़े साथ में बाबूजी, मर गए बेटा अब खैर नही, मैं भागने लगा पर तभी बाबूजी की आवाज, रुको इधर आओ, हम दोनों मारे डर के कांपते हुए उनके पास गए।
अच्छा त ये तोर टूरा हरे रे रथ, अब्बड़ बदमाश हे लगथे साले ह, कइसे रे…
सुनते हुए दीवान सर के हाथों में मेरा कान कसमसा रहा था, जोर के चपत ने मेरे गाल लाल कर दिए थे, इस दहशत में पूरन भी मरे जा रहा था।
मैं और पूरन सकपकाए से आंखे जमीन पर टिकाए चुपचाप खड़े थे, मैं चोर नज़रों से दीवान सर के सूजे माथे को देख रहा था, यार बड़ी गलती हो गई स्कूल में एडमिशन हुआ नही की कांड हो गया, मैं मन ही मन अपनी नादानी पर दुखी हो रहा था, बेचारा मेरा भाई पूरन फोकट में फंस गया था, उसकी गुस्साई आंखे लगभग यही बयां कर रही थी।
बहुत होगे बेटा मस्ती अब बताहूं तुमन ल, चलो मुड़ के ऊपर से हाथ करते हुए अपने कान पकड़ो, दीवान सर की लाल आंखें बड़ी डरावनी लग रही थी और तब स्कूल में प्रवेश का यही सूत्र हुआ करता था, हाथ से कान पकड़ना, हम दोनों लंबे, हमारे हाथों ने आसानी से कान पकड़ लिए और हमरा स्कूल में प्रवेश भी हो गया।
बाबूजी खुश थे, आज से ही इन्हें स्कूल में रहने दो, कहते हुए दीवान सर की आंखो में बदले की आग दिख रही थी, इधर मैं और पूरन मारे डर के सन्न खड़े थे।
स्कूल के मुख्यद्वार पर हम दोनों मासूमों को छोड़कर जाते हुए बाबूजी एक बार मुड़े और देखकर आगे बड़ गए, यूं की जैसे, भट्टी पर अपना जरा सोना, खरा करने छोड़े जा रहे हों।
उनके जाते ही दीवान सर हमारी ओर मुड़े, कइसे रे काय नाम हे तोर, हाथ में लहराती छड़ी बरसने के लिए तैयार लग रही थी, गज्जू अऊ ये पूरन, अरे मैं तोर से पूछेंव न, त तैं बता, कहते हुए दीवान सर ने पहला पाठ पढ़ाया और जांघों पर झड़ी बरसने लगी, पूरन खामोशी से मेरा दर्द महसूस करता कांपता रहा।
हम दोनों कक्षा में अपने लिए जगह तलाश कर रहे थे, सीनियर सहपाठी हमें गुस्साए देख रहे थे, कती रथो बे तुमन ?
बस्तीपारा, पूरन जवाब दे रहा था और मैं गुस्से से लाल हो रहा था, झड़ी की प्रतिक्रिया किधर उतारु यही सोंच रहा था कि इस सवाल नें मुझे मौका दे दिया।
अबे तुमन कहां रथो बे, ये स्कूल हमर गांव के हे बेटा अऊ तैं हमी मन ले पूछथस…मेरे हाथ प्रश्न करने वाले लड़के की कॉलर पर जा धरा था, झगड़े हुए मारपीट मचा और फिर दोस्ती हो गई।
धीरे धीरे कक्षा में हमारी पूरी टीम पहुंच गई थी, मैं, पूरन, पिंटू(प्रकाश), कौशल, टिंकू(कपिल), छोटू(पूर्णेंद्र), गिरीश और कई साथी जो एक ही जगह पुरानीबस्ती से थें और देखते ही देखते हमारा साम्राज्य स्थापित हो गया।
दीवान सर के बारे में हमने जो सुना था सच था उनके पढ़ाने का तरीका सख्त था पर आज उसी सख्ती ने हमें अपना मुकाम दिया है, मैं धीरे धीरे उनका प्रिय छात्र बन गया था, उनके घर में गौमाता को पैरा खिलाने से लेकर उनके सारे आदेशों का मैं मन से पालन करता था, दीवान सर एक शिक्षक ही नही पिता भी थे, उन सभी बच्चों के लिए जो उनकी कक्षा में थे, हम सारे दोस्त आज भी अपने प्रथम शिक्षक को याद करते हैं, वो हमारे बीच नही हैं पर उनकी शिक्षा हमारे अच्छे बुरे में उनका आशीर्वाद बनकर हमारे साथ है।
आज शिक्षक दिवस पर मैं अपने प्रथम शिक्षक स्व. दीवान सर के साथ अपने सभी गुरुजनों को प्रणाम करता हूं।
गजेंद्ररथ ‘गर्व’