रायपुर: छत्तीसगढ़ में एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जहां फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्रों के आधार पर सरकारी नौकरियां हासिल करने का मामला सामने आया है। इस रैकेट में कई बड़े अधिकारी भी शामिल बताए जा रहे हैं, जिनमें 7 डिप्टी कलेक्टर, 3 नायब तहसीलदार और विभिन्न विभागों के 154 से अधिक अधिकारी व कर्मचारी शामिल हैं।इस खुलासे के बाद प्रदेश के प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मच गया है और सरकार ने मामले पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी है।
यह पूरा मामला तब सामने आया जब छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और कानूनी लड़ाई लड़ी। संघ के प्रदेश अध्यक्ष बोहित राम चंद्राकर के नेतृत्व में हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई, जिसमें दिव्यांग कोटे के तहत हुई भर्तियों की जांच की मांग की गई थी। याचिका के बाद सरकार ने दिव्यांग प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों की मेडिकल बोर्ड से दोबारा जांच कराने का आदेश दिया था।
जांच में हो रहे चौंकाने वाले खुलासे
जांच प्रक्रिया के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। उदाहरण के तौर पर, लोरमी विकासखंड के एक व्याख्याता, जिनके पास श्रवण बाधित का प्रमाणपत्र था, रायपुर मेडिकल कॉलेज की जांच में उनके दोनों कान बिल्कुल सामान्य पाए गए।रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि वे दिव्यांगता की श्रेणी में नहीं आते हैं। मुंगेली जिले के कुछ गांवों में तो पिछले कुछ सालों में 300 से ज्यादा लोगों के बहरे होने के मामले सामने आए, जिनमें से 147 ने श्रवण बाधित प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी भी हासिल कर ली।
सरकार के सख्त रुख के बाद भी कई आरोपी अधिकारी और कर्मचारी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होने से बच रहे हैं।कई लोग तो जांच से बचने के लिए हाईकोर्ट तक पहुंच गए हैं। इस मामले में अब 20 अगस्त को अगली सुनवाई होनी है। प्रशासन ने संबंधित विभागों को पत्र लिखकर जांच में सहयोग न करने वालों पर विभागीय कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
विभिन्न विभागों में फैला है फर्जीवाड़े का जाल
यह फर्जीवाड़ा किसी एक विभाग तक सीमित नहीं है। जांच के दायरे में आए 154 लोगों में 7 डिप्टी कलेक्टर, 3 नायब तहसीलदार, 52 ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी, 10 व्याख्याता, 2 जनपद सीईओ, 23 उप अभियंता और वित्त विभाग के लेखा अधिकारी समेत कई अन्य पदों पर बैठे लोग शामिल हैं। छत्तीसगढ़ दिव्यांग सेवा संघ ने आरोप लगाया है कि इस फर्जीवाड़े के पीछे एक संगठित गिरोह काम कर रहा है, जो पैसे लेकर फर्जी प्रमाणपत्र बनवाता है।