छत्तीसगढ़ को निर्माण के 24 साल बीत चुके हैं फिर भी एक बड़ी पीड़ा छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान को लेकर बनी हुई है।
छत्तीसगढ़ के पुरोधा संत कवि पवन दीवान स्वाभिमान को लेकर लगातार एक बात कहते रहे…
“छत्तीसगढ़ में सब कुछ है सिर्फ एक कमी स्वाभिमान की”
उनकी यह पीड़ा उनके जीते जी तो बनी ही रही लेकिन आज नए छत्तीसगढ़ में भी छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की पीड़ा बनी हुई है।
इस धनी धरती पर गरीब छत्तीसगढ़ियों को उनके अपने गिरे हुए स्वाभिमान के कारण शायद नेतृत्व का अवसर नहीं मिल रहा? और कहीं अवसर मिलता भी है तो यही एक दूसरे की टांग खींचकर गिरा देते हैं?
छत्तीसगढ़ियों को एक करना मेंढकों की तौलाई के बराबर कठिन परिश्रम वाला काम माना जाता है! तो क्या सच में छत्तीसगढ़ में स्वाभिमान की कमी छत्तीसगढ़ियों की दुर्दशा का कारण है या फिर एक बड़ा षड्यंत्र छत्तीसगढ़ियों के स्वाभिमान को रौंदने के लिए रचा गया है!
स्वाभिमान की पहली सीढ़ी किसी भी प्रदेश की मातृभाषा है और जिस प्रदेश में अपनी मातृभाषा को ही हीन भाव से देखा जाए वहां उस प्रदेश के लोगों का स्वाभिमान कैसे उच्च हो सकता है?
इन्हें सब बातों को अपने चिंतन का विषय बनाया है छत्तीसगढ़ के सामाजिक चिंतक, छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्ररथ गर्व ने, जरा ध्यान से सुनिए! शायद उनका गुरु मंत्र काम कर जाए….