आज महिला दिवस पर… जरूर पढ़ें
गज्जू, तुम्हारी मां ढूंढ रही है’
चाची मुझे आवाज लगा रही थी, मैं अनसुना कर रहा था, रो रहा था, वह पास आई, क्यों क्या हुआ मां ने कुछ कहा क्या?
मैंने नहीं में सर हिला दिया, फिर क्यों नाराज हो, पापा ने डांटा क्या? मैं चुपचाप था।
अरे फिर क्या बात हुई? पूछ कर वह थक गई थी मैं कोई जवाब नही दे रहा था! पांव पटकते हुए चाची चली गई।
बीते कुछ दिनों की मेरी खामोशी, उतरा हुआ चेहरा, आंखों से उठते सवाल मां-बाबूजी की नजरो में आ चुके थे।
क्या हुआ तबियत तो ठीक है ना, मां ने सर पर हाथ फेरते हुए पूछा, मैं उन्हे एक टक देखता रहा, मां भी मुझे टकती रही, आ चल कुछ खा ले, मां बांह पकड़कर मुझे उठाते हुए बोली मैंने मना कर दिया!
दूर से बाबूजी मुझे देख रहे थे, वो पास आए और सामने वाली खाट पर बैठ गए और मुझे एकटक देखने लगे, मैं उन्हे सीधे देखने की हिम्मत नही कर पा रहा था, पर वे मुझे लगातार एकटक देखे जा रहे थे फिर क्या था मैं फफक कर रो पड़ा और बाबूजी से लिपटते हुए पूछ ही लिया!
क्या मैं आप दोनों का बेटा नही हूं? क्या आपलोगों ने मुझे अनाथ आश्रम से गोद लिया है?
इतना सुन मां अपनी हंसी नही रोक पाई, वह खिलखिला कर हंसी और रो पड़ी, किसने कहा तुम्हे ऐसा? बाबूजी की दमदार आवाज गूंजी, मां ने मुझे छाती से लगा लिया।
बोल न किसने कहां तुझे ये सब? अब मां सवाल करने लगी, सरोज ओ.. सरोज?
मां की आवाज सुन बुआ वहां पहुंच गई थी, क्यों तुमने गज्जू से क्या कहा?
नही भाभी मैंने तो कुछ नही कहा!!
बुआ डरी हुई थी, बाबूजी भी बुआ को घूर रहे थे!डरी सहमी बुआ चोर नजरों से मुझे ताके जा रही थी, कुछ देर के लिए सब मौन हो गए।
मैं अपने घर का इकलौता बेटा गज्जू, तब मेरी उम्र 5 साल की रही होगी, मेरी दो बुआ जिनमें बड़ी 16 और छोटी सरोज बुआ 14 वर्ष की थीं, जिनसे झगड़े बिना मेरे पेट का पानी नही पचता था।
हमारे घर में दादा-दादी, चाचा-चाची, मैं और मां-बाबूजी मिलाकर हमारा परिवार 9 जनों का था मेरी बड़ी 3 अन्य बुआ विवाह कर ससुराल जा चुकी थीं।
मैं दादा-दादी का दुलारा था और आए दिन दोनों बुआ को मेरी वजह से घर में डांट खानी पड़ती थी।
मैं स्कूल में भी उन्हे परेशान करने पहुंच जाता था!
शायद उन्हे भी अंदाजा नही था की उनकी कोई बात मैं इतनी गंभीरता से लुंगा।
दरअसल कुछ दिन पहले झगड़ते हुआ सरोज बुआ ने मुझे कह दिया था कि मैं कहीं से गोद लेकर लाया गया बच्चा हुं और तब से मैं मन ही मन खुद को अपने परिवार से अलग सोंचने लग गया, बाबूजी की पुरानी डांट और थप्पड़ को याद कर इस बात की स्वत:पुष्टि भी मैंने कर डाली की सच में मैं गोद लिया बच्चा ही हूं।
परिवार के सदस्यों का सारा स्नेह, लाड़-दूलार भुलाकर मैं हर वक्त बस यही सोंचता रहता की आखिर मैं किसका बच्चा हूं?
पर अब जब मैंने बाबूजी से पूछ ही लिया था फिर तो पता चलना ही था।
बाबूजी को सारा माजरा समझ में आ गया था, वो मुझे देखकर मुस्कुराए और बस इतना ही कहा, बुआ तुम्हे रुलाने के लिए ऐसा कह गई, तुम तो हमारे ही बेटे हो।
उस रात मां मुझे कलेजे से लगाकर सोई, सुबह बाबूजी ने चेहरा देखा और मुस्कुरा दिए, पास बैठी दोनों बुआ खिलखिलाकर हंसने लगी, दादी ने उन्हे डांट कर चुप कराया।
शायद मेरे उठने के पहले उनमें मेरे सवाल को लेकर चर्चा हुई रही होगी, हर सुबह कि तरह मैं दादी की गोद में जाकर बैठ गया, कुछ दिन के बाद सब कुछ सामान्य हो गया और बुआ के साथ लड़ाई भी।
ये सारी बातें जो मैंने यहां शेयर की है वास्तव में ये मेरी याददाश्त पर बहुत धुंधले से थे, लेकिन कुछ दिन पहले ये कहानी मेरी बेटी ने मुझे सुनाया, मैं आश्चर्य चकित रह गया, मेरे बचपन की बातें जिसे मैंने कभी अपनी पत्नी से भी नही की थी, इसे कैसे पता?
मैंने मां को मुड़कर देखा जो पास ही बैठी आम का अथान बना रही थी।
मैं समझ गया था, मां मुस्कुरा रही थी, उनकी आंखों में वही बात थी जो उस रात मुझे सीने से लगाकर रोते वक्त मैंने पढ़ा था।
-गजेंद्ररथ वर्मा ‘गज्जू’ 9827909433