बाहरी हड़प रहें छत्तीसगढ़िया लोगों के रोजगार?
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा यहां प्रवास किए हैं तो वो है बिहारी!
छत्तीसगढ़ के हर गली कूचों में बिहार, उत्तरप्रदेश का आदमी आपको घूमता मिल जायेगा!
भिलाई और रायपुर राजधानी समेत वनांचल इलाकों में भी तेजी से ये लोग कब्जा जमा रहे हैं!
गली में सब्जी बेचने वाले से लेकर उद्योग में मजदूरी और बड़े मीडिया हाउस में पत्रकारिता जगत को भी घेरे रखे हैं बिहारी!
जी हां छत्तीसगढ़ के लगभग उद्योगों में इनकी पैठ बन चुकी है, यहां तक कि सुरक्षा देने वाली गार्ड कंपनियां भी यही चला रहें हैं, शहरों में सब्जियां बेचने से लेकर गांवों में कुर्सी कंबल और प्लास्टिक समान बेचने वाले भी ज्यादातर बिहार और उत्तरप्रदेश के मिलेंगे!
वहीं छत्तीसगढ़ के मीडिया हाउसों में भी इनका ही बोलबाला है शायद इसी लिए छठ पर्व आते ही राज्य की मीडिया एपिसोड बना कर परप्रांतीय संस्कृतियों को लगातार छत्तीसगढ़ियों के मत्थे थोप रहे हैं!
प्रदेश की कोई भी बड़ी फैक्ट्री उठाकर पता करिए उनमें एक तिहाई बिहारी मिलेंगे, यहां तक कि सरकारी विभागों के ठेके पर चल रहे काम भी बिहारियों के भरोसे है!
विश्वास नहीं हम पैसा कमाने आए हैं!
एक निजी कंपनी में सुरक्षा का प्रभार देख रहे कुछ बाहरी लोगों ने कंपनी के ही मालिक के घर डकैती डाली तब उनका बयान था, हम पैसा कमाने निकले हैं, आपका भरोसा कमा कर हमें क्या मिलेगा?
एक बड़े अखबार में यह हेडलाइन भी बनी थी।
छत्तीसगढ़ शांत राज्य, यहां के लोग नही करते विरोध प्रतिरोध, अतिथि देवोभव की भावना का बाहरी उठाते हैं फायदा!
छत्तीसगढ़िया भावनाओं में सबसे नुकसानदेह भाव है, अपनों पर अविश्वास और गैरों पर अतिविश्वास।
यही कारण रहा की बाहरी लोगों को यहां स्थापित होने में कोई अड़चन नहीं आई, आज बाहरी हमारे पड़ोसी तो बने ही, अब रोटी बेटी का रिश्ता भी बन रहा है!
स्थानीय अस्मिता के लिए खतरा!
बाहरीवाद छत्तीसगढ़ की अस्मिता के लिए बड़ा खतरा बन रहा है।
जिस तेजी से प्रदेश में उत्तर भारतीयों की संख्या बढ़ रही है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है की यह प्रदेश उनके लिए कितना आरामदायक है, यहां उनके लिए रोजगार ही नही राजनीति का भी दरवाजा खुला है!
आप देखिए जिस भिलाई स्टील प्लांट में बिहारी, तेलगु, बंगाली मजदूरी करने आए थे आज आसपास उन्होंने मिनी बिहार, बंगाल और आंध्र बसा दिया है, मेजोर्टी मिली तो राजनीति भी खेलें और अब प्रदेश की सत्ता भी कंट्रोल कर रहे हैं, ऐसे में उस प्रदेश की भविष्य और अस्मिता को कैसे बचाया जाए?
इस बात पर छत्तीसगढ़ के लोगों को विचार करने की जरूरत है!
व्यापार उद्योगों पर मारवाड़ियों का कब्जा और मजदूरी के लिए इन्हें बिहारी पसंद हैं?
छत्तीसगढ़ में व्यापार उद्योगों पर लगभग 90 प्रतिशत कब्जा मारवाड़ियों और गुजरातियों का है और मजदूरी के लिए इन्हें बिहारी, बंगाली और उड़िया पसंद हैं, छत्तीसगढ़िया मजदूरों को ये कामचोर और आलसी बताते हैं साथ ही यह आरोप भी लगाते हैं कि इन्हें काम से ज्यादा उत्सव त्योहार पसंद है, उनका यह कहना कुछ हद तक सही भी है!
उद्योग संचालित करने की मजबूरी बन रही गले की फांस!
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर उद्योगपतियों को अपना फर्म संचालित करने के लिए बाहर से मजदूर लाने की मजबूरी है पर उनकी यह मजबूरी छत्तीसगढ़ के लिए ठीक नहीं है, अब वे खुद अपनी इस मजबूरी के शिकार हो रहे हैं, बीते कुछ सालों में बड़े कॉर्पोरेट में जितने भी अपराध हुए उनमें यही प्रवासी मजदूर सक्रिय थे, जिससे यह कहावत चरितार्थ हो रही है की जिस रस्सी को कुएं से पानी खींचने के लिए लाया गया था अब वही गले का फंदा बन रही है!
छत्तीसगढ़ियों को नही अपनी अस्मिता की फिक्र!
इस प्रदेश की सबसे बड़ी विडंबना रही की यहां के भोले भाले लोगों को कभी अपने अस्तित्व की लड़ाई का ख्याल नही आया, ये अपने में मस्त, बेपरवाह और अपनों से ही लड़ने वाले लोग हैं, बाहर से आया कोई भी इनके लिए देव तुल्य हो जाता है, शिक्षा की कमी, स्वाभिमान का शून्य होना भी एक बड़ा कारण है कि छत्तीसगढ़ अपनी स्थानीयता और अस्मिता बचाने में कोई रुचि नहीं रखता?
आने वाले समय में प्रदेश की पहचान उत्तर भारतीयों के साम्राज्यवाद का हिस्सा के रूप में होगा?
यह कहना गलत नहीं के उत्तर भारतीयों ने छत्तीसगढ़ को अपने साम्राज्यवाद का हिस्सा मान लिया है, राजधानी से लेकर जिला मुख्यालय तक इनकी पहुंच और धमक है, घोर नक्सल इलाकों में भी यही लोग कब्जाधारी बने हुए हैं, यही ठेकेदार और व्यापार चला रहे हैं!
इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी की प्रदेश के मुख्यमंत्री का मुख्य सलाहकार भी एक बिहारी है!
समय रहते छत्तीसगढ़ियों को जागना होगा नही तो साम्राज्यवाद का दीमक इनके अस्तित्व को चांट जायेगा!
आलेख: गजेंद्ररथ गर्व, प्रदेश अध्यक्ष, छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ