नगर पंचायत खरोरा में चुनावी माहौल है, गलियां फ्लेक्स पोस्टर से पट चुकी हैं, दीवारों पर रंगीला प्रचार जारी हैं, गांव गली महिलाओं की टोली, पुरुषों की टोली, युवाओं की टोली घरों घर अपने प्रत्याशी का प्रचार करने घूम रहे हैं।
पार्टियों के पीछे लोगों की भीड़ चल रही है, झंडा डंडा उठाए लोग नारेबाजी कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में होने क्या वाला है यह तय होगा 15 फरवरी को!
सामाजिक संगठन और जागरुक मंच लगातार मतदाताओं से उनके अपने मत का सदुपयोग के लिए गुहार लगा रहे हैं।
आप क्यों और किसे वोट दें?
नगरी निकाय चुनाव आपसी परिचय और व्यक्तिकता का होता है, यहां पर पार्टियों की घोषणाएं ज्यादातर काम नहीं करती और एक मतदाता को क्या चाहिए मूलभूत सुविधाएं जिसके लिए वह आज भी तरस ही रहा है?
आखिर सालों से जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों के वादों का कोई सर पैर ना हो तो आखिर जनता बेचारी करे भी तो क्या?
सामाजिक संगठनों ने जनता से अपील की है, कि वह ऐसे प्रत्याशियों का चुनाव करें जो उनके सुख-दुख, सुविधा असुविधाओं पर तटस्थता से साथ खड़ा हो लेकिन ऐसा कोई है?
आखिर मतदाताओं को अंधों में एक काना ही तलाशना है?
वह काना कौन हो सकता है? देखिए अपने आसपास, खोजिए उसे क्या उसका व्यक्तित्व, उसका कृतित्व आपके विश्वास से मेल खाता है?
अगर मेल खाता है तो निश्चित ही आप अपना मतदान उसे करिए!
पंचायत से नगर पंचायत का तमगा और सुविधाएं?
ग्राम पंचायत खरोरा को 2004 में नगर पंचायत की संज्ञा मिली, लोगों में खुशी थी कि अब उन्हें एक कस्बाई नागरिक कहलाने का गौरव मिलेगा लेकिन क्या यह सपना साकार हुआ, यह एक बड़ा सवाल है?
वर्ष 2005 में प्रथम नगर अध्यक्ष का चुनाव हुआ और जितने काम होने थे एक बार में कर दिए गए!
रोड,नाली,पानी सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त हुई तब हमारे नगर की जनसंख्या भी लगभग 4000 के करीब थी और अब वही जनसंख्या दोगुनी हो चुकी है यानी की 8000 के लगभग लेकिन क्या सुविधा दोगुनी हुई?
निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल?
बात निर्माण की करते हैं, आप नजर घुमा कर देखिए नगर खरोरा को जितने सीसी रोड बने हैं बीते सालों में उन्हें देखकर आप रो देंगे?
वह खुले पांव चलने लायक ही नहीं है, बालू और गिट्टियां बाहर आ रही है, सीसी रोड पर धूल उड़ रहे हैं, सीमेंट के कंड लोगों के आंखों में चुभ रहे हैं।
तालाबों के नगर में तालाबों की दुर्दशा!
यहां की तालाबों को देखिए, नगर खरोरा तालाबों का नगर माना जाता है लेकिन उन तालाबों की स्थिति आज क्या है?
तेज दुर्गंध ने तालाब के पार बसने वाले लोगों का जीना हराम कर रखा है।
गार्डन बनाम जंगल या शराबखोरी का अड्डा?
उद्यानों की दशा देखिए, ना तो वहां बाउंड्री है, ना तो हरियाली है और ना ही बैठने की कोई व्यवस्था है बल्कि शराब की बोतलों और पानी चखना पैकेट से पटे पड़े हैं!
कौन जाना चाहता है वहां? क्या ऐसे में आप और हम अपने बच्चों के साथ गार्डन घूमने जा पाते हैं?
नगर खरोरा के आसपास हरियाली और जंगल हुआ करती थी कभी पर आज का नगर खरोरा औद्योगिक जान पड़ रहा है!
अल्ट्राटेक की माइनिंग ने यहां की व्यवस्था को गड़बड़ा दिया है?
पुरानी बस्ती खरोरा से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर माइनिंग में ब्लास्ट हो रहे हैं, घरों में दरारें पड़ना स्वाभाविक है।
भूजलस्तर लगातार नीचे जा रहा है क्योंकि माइनिंग भूजल स्तर को सोंख रही है।
बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां आ रही है, क्या हम खुली हवा में सांस लेने लायक रह गए हैं?
जरा विचार करिए आखिर यह सब क्यों हो रहा है?
क्या हमारे जनप्रतिनिधि हमारे जीवन के लिए सोच रहे हैं या फिर अपना जेब भर रहे हैं?
वोट देने से पहले आपको यह भी सोचना है?
नगर पंचायत खरोरा थाना क्षेत्र में लगातार नशे का व्यवसाय फल फूल रहा है शराब की मंडियां सज रही हैं!
नौजवान नशे की गिरफ्त में अपराध का रास्ता पकड़ रहे हैं! कौन है इसका गुनहगार?
आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं दिखाई चुस्ती? क्या हमारा जनप्रतिनिधि कमजोर था या फिर वह कुछ और ही कर रहा था?
आप देखिए नगर के चौक चौराहों पर चखना,पानी पॉच और शराब की शीशियां मिलेगी!
नौजवान खुलेआम गली मोहल्लों में बैठकर शराबखोरी कर रहे हैं, गंदी गालियां निकाल रहे हैं और महिलाएं घर से निकलने के लिए डर रही हैं!
किसे नही चाहिए भयमुक्त वातावरण, क्या हम और आप नहीं चाहते कि हमारे बीवी बच्चे बिना डर भय निश्चिंत होकर नगर में घूम सके? लेकिन यह कैसे हो पाएगा? अगर खरोरा ही अवैध शराब के दलदल में धस चुका हो!
यहां के बेरोजगार युवा शराब बेचना अपना रोजगार बना चुके हैं! रोज सुबह गाड़ियों में शराब की बोतल लाद कर तालाब के पार गली मोहल्लों के बीच से दौड़ते वाहनों को आप हम देख रहे हैं लेकिन कोई कुछ नहीं कहता?
डर है क्योंकि यह माफिया आम लोगों को गाजर मूली समझती हैं शायद इसीलिए हमें सोच समझकर मतदान करना है, इन परिस्थितियों को बदलने वाला कोई है हमारे आसपास?
इस बार मतदान करने से पहले यह जरूर सोचिए कि क्या खरोरा पहले जैसा खरोरा है?
क्या खरोरा को हम अपनी आत्मशक्ति और मतदान की ताकत से बदल सकते हैं?
यकीनन आप बदल सकते हैं क्योंकि प्रजातंत्र आम जनता को मतदान की ताकत से सत्ता परिवर्तन और सुनिश्चित व्यवस्था पाने का अधिकार देती है।
अब बात छत्तीसगढ़ में स्थानीय लोगों के अधिकारों की करते हैं।
औपनिवेशिक राज्य निर्माण के बाद से छत्तीसगढ़ व्यापारियों खनन माफियाओं का अड्डा बन चुका है, आम गरीब किसान छत्तीसगढ़िया अपनी खेती जमीन खोता जा रहा है! उद्योगवाद इतना हावी हो चुका है की राजधानी से 100 किलोमीटर दूर तक की जमीने करोड़ों की हो गई है, क्या इन जमीनों पर अब यहां का किसान दावा ठोक सकता है? बिल्कुल नहीं अब किसान जमीन बेचता है और मजदूर बन जाता है!
इस व्यवस्था को बदलने के लिए आम छत्तीसगढ़ियों को अपने बीच से ही नेता चुनना होगा।
नेतृत्व का बागडोर आम छत्तीसगढ़ियों को अपने हाथ में लेना होगा और सोचना होगा अपने लोगों के लिए, करना होगा काम अपनी छत्तीसगढ़ महतारी के लिए, जीना होगा अपने स्वाभिमान के लिए।
मतदान करने से पहले इन बातों को ध्यान से सोंचे, चिंतन करें!
क्योंकि आपको खरीदने की कोशिश की जाएगी।
आपको बरगलाने की कोशिश की जाएगी!
आपको झूठे सपने दिखाने की कोशिश की जाएगी लेकिन आपको सोचना है अपने गांव, नगर, शहर, राज्य और देश के लिए।
गजेंद्ररथ गर्व, प्रदेश अध्यक्ष, छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ, लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता 9827909433