नगर पंचायत खरोरा चुनाव 2025 का एग्जिट पोल रिपोर्ट वार्डवार लोगों से की गई चर्चा मतदान प्रतिशत के आधार पर बनाया गया है यह एक संभावना मात्र है!
वार्ड नं 1 में बीजेपी और कांग्रेस में कड़ी टक्कर की संभावना, पूर्व में कांग्रेस काबिज रहा है कुछ एंटी इंकम्बेंसी इस वार्ड में देखा गया है, ऐसे में इस बार बीजेपी कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही है, पहले यह माना जा रहा था कि कांग्रेस पहले की तरह आसानी से सीट पर काबिज हो सकती है पर अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी!
इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज सुरेंद्र गिलहरे और बीजेपी के मिथलेश बांधे जो बीजेपी के कद्दावर नेता वेदराम मनहरे का प्रत्याशी माना जा रहा था के पक्ष में काफी लोगों के रुझान मिले हैं।
वार्ड नं 2 इस वार्ड में भी एंटी इंकम्बेंसी देखी गई है, लंबे समय से यहां भी कांग्रेस के भारती संत नवरंगे का कब्जा है लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए आसान नही हो सकता, निर्दलीय प्रत्याशी को भी इस वार्ड में भारी समर्थन मिला है साथ ही बीजेपी की प्रत्याशी ने भी कड़ी टक्कर दी है।
इस बार इस वार्ड से भारती संत नवरंगे कांग्रेस से, बीजेपी से मनीषा कोसले और निर्दलीय धनेश्वरी खरोले मैदान में रहीं और तीनों के बीच कड़ी टक्कर देखी गई है।
बीजेपी का पारंपरिक मतदाता इस वार्ड में कम ही है शायद, वहीं लोगों में बदलाव का धुन भी देखा गया ऐसे में इस वार्ड के लिए भविष्यवाणी सही नही होगा, 15 को परिणाम का इंतजार करना होगा।
वार्ड नं 3 में इस बार बीजेपी कांग्रेस के प्रत्याशियों पर निर्दलीय राहुल मरकाम भारी पड़ सकता है!
वार्ड नं 4 में भी भारी एंटी इंकम्बेंसी देखी गई यहां भी बीजेपी कांग्रेस को निर्दलीय प्रत्याशी ने नाको चने चबा दिए!
वार्ड नं 5 नगर में सबसे चर्चित वार्ड 5 में घमासान इतना भयंकर रहा के कोई भविष्यवाणी नही की जा सकती, यहां कांग्रेस के प्रत्याशी कपिल नशीने और निर्दलीय शेखर देवांगन के बीच नेक टू नेक मुकाबला रहा लेकिन अंतिम दिनों में बीजेपी प्रत्याशी सावन शर्मा के पक्ष में झुकाव के चलते इस वार्ड की भविष्यवाणी जल्दबाजी होगी!
वार्ड नं 6 नगर पंचायत खरोरा का यह वार्ड चुनाव के पहले दिन से ही चर्चित और मतदाताओं के लिए असमंजस भरा रहा।
वार्ड पार्षद रश्मि वर्मा को नपं अध्यक्ष का दावेदार माना जा रहा था पुरानी बस्ती खरोरा इस बात की पूरी तैयारी में था इन्हें टिकट मिला और जीत पक्की! लेकिन बीजेपी ने पाशा पलट दिया और रश्मि वर्मा को पार्षद की टिकट पकड़ा दी, इससे पहले उन्ही के रिश्तेदार माने जाने वाले कांग्रेस के धनेश वर्मा इसी वार्ड के लिए प्रत्याशी बनाये जा चुके थे और करेले पे निम चढ़ा ये हुआ कि इसी वार्ड से JCP ने अपना एक मात्र प्रत्याशी नशीने परिवार से खड़ा कर दिया, हेमलता नशीने जो बाबा नशीने की बड़ी बहन है। वहीं इस वार्ड में नए लोगों के जुड़ने और पुराने का कटने वाला किस्सा भी है ऐसे में यह वार्ड पूरी तरह बिरयानी हो चुका है यहां भी कोई भविष्यवाणी करनी जल्दबाजी होगी!
वार्ड नं 7 भी चर्चित वार्ड रहा, बीजेपी से युवा गायक लोककलाकार जयप्रकाश वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया था तो वहीं कांग्रेस ने छबीला सेन को लेकिन इन दो युवा चेहरों के बीच निर्दलीय लोकेश देवांगन भारी पड़ते दिखे, इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि लोकेश अध्यक्ष प्रत्याशी अरविंद के भाई है और निर्दलीय में निशा अरविंद जिताऊ प्रत्याशी घोषित रहीं, ऐसे में उसका लाभ लोकेश को मिलता दिख रहा है फिर भी इस वार्ड के लिए भविष्यवाणी जल्दबाजी होगी।
वार्ड नं 8 में सीधा बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने रहे, इस सीट को बबलू भाटिया का पारंपरिक सीट माना जाता रहा है लेकिन इन बार बीजेपी ने बबलू का किला फतह करने कड़ी रणनीति अपनाई, चुनाव के ठीक पहले मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का भव्य कार्यक्रम, JCP के अमित बघेल का आना और कई तरह के गणित इस वार्ड में देखे गए और अंत मे एक रात का विवाद !
यह वार्ड लंबे समय से बबलू का पारिवारिक वार्ड रहा है, पहली बार बीजेपी ने इसी वार्ड से इन्ही लोगों के बीच से प्रत्याशी दे दिया ऐसे में टक्कर कड़ी है, इस वार्ड के लिए भविष्यवाणी जल्दबाजी होगी।
वार्ड नं 9 पर इस बार सबकी नजर है, इस वार्ड से कांग्रेस प्रत्याशी ने नामांकन ही नही भरा तभी से कुछ डाउट था!
यह वार्ड पत्रकार भरत कुम्भकार का अभेद किला माना जाता है, लेकिन इस बार इस किले को भेदने बीजेपी ने भारी जुगत भिड़ाई है लेकिन भरत को भेद पाना क्या आसान होगा?
यूं तो वार्ड में सुमित सेन के पक्ष में लोग ज्यादा बात करते मिले, यहां भी एक तरह की एंटी इंकम्बेनसी दिखी, दोनों प्रत्याशी के बीच एक बार बराबर का टॉस भी हो चुका है ऐसे में इस बार जनता ने कुछ अलग सोंच होगा शायद, इस वार्ड को भी 15 फरवरी के लिए छोड़ते हैं।
वार्ड नं 10 महिला आरक्षित रहा, इस वार्ड में बीजेपी ने लीला देवांगन और कांग्रेस ने शमशाद बेगम खान को प्रत्याशी बनाया था लेकिन निर्दलीय शांति ललित वर्मा ने इस वार्ड में जीतोड़ मेहनत की है, पहले भी इस वार्ड से ललित वर्मा प्रत्याशी रहे हैं और ऐसे में लोगों का झुकाव निर्दलीय के उम्मीदवार के प्रति ज्यादा दिखा, लेकिन वहीं दूसरे निर्दलीय उमीदवार पूर्व पार्षद बैशाखू देवांगन की पत्नी सोहाद्र देवांगन के प्रति इस वार्ड में भारी जनसमर्थ की भी चर्चा रही परिणाम के लिए 15 तारीख का इंतजार ठीक रहेगा।
वार्ड नं 11 भी इस बार बीजेपी के लिए टफ गया है, 3 युवा उम्मीदवार इस वार्ड से थे बीजेपी ने पूर्व पार्षद पंच राम यादव को टिकट दिया तो वहीं कांग्रेस ने राजू पाल को उम्मीदवार बनाया, यहां निर्दलीय दिनेश यादव ने बीजेपी के पंच राम का गणित बिगाड़ दिया, यादव बाहुल्य वार्ड में 2 यादवों को टकराना भारी पड़ सकता है, राजू के लिए कहा जा रहा है कि मध्यावधि चुनाव के समय से ही उसने मेहनत शुरू कर दी थी लेकिन फिर भी पंच राम के लिए लोगों का झुकाव दिखा, यह वार्ड भी भविष्यवाणी के लिए ठीक नही।
वार्ड नं 12 में इस बार फिर बीजेपी ने पूर्व पार्षद पुरणेंद्र पूनम पाध्याय को ही लड़ाया पहले पहल एंटी इंकम्बेंसी की बात थी लेकिन कांग्रेस से जुबैर अली के सामने अब्दुल नईम टकरा गए वहीं दूसरी ओर पूनम के इलाके में राहुल यादव की दखल हो गई!
इस वार्ड का गणित भी 2 निर्दलीय उम्मीदवार के चलते भविष्यवाणी के लिए जल्दबाजी होगी, वैसे इस वार्ड ने पूनम के प्रति प्रेम बरकरार रखा है या नही देखने वाली बात होगी।
वार्ड नं 13 इस वार्ड का कर्ताधर्ता माने जाते हैं मुरलीधर पंसारी यानी सब के लालू भाई, इस बार भी बीजेपी के सिपाही के रूप में प्रत्याशी बनाये गए, कांग्रेस ने संजय शर्मा को उतारा वहीं निर्दलीय शरद साहू की एंट्री इस वार्ड में बीजेपी के लिए मुकाबले को टक्कर का बनाने वाली हो गई, इस वार्ड के लिए कहा जा रहा है कहीं बराबरी न हो जाये!
संजय ने भी कांग्रेस के पारंपरिक वोटर को अपने कब्जे में किया और कड़ी उपस्थिति दर्ज कराई, अब 15 फरवरी को यहां की स्थिति साफ होगी।
वार्ड नं 14 यह वार्ड भी महिला आरक्षित रहा, कांग्रेस की एल्डरमेन रही अम्बिका बंछोर ने बीजेपी की टिकट से यहां चुनाव लड़ा, तो वहीं कांग्रेस ने मंजू देवांगन को टिकट दिया, यह वार्ड कुर्मी कोष्टा बाहुल्य वार्ड है ऐसे में एक और कुर्मी निर्दलीय प्रत्याशी दुर्गा अशोक वर्मा के प्रति वार्ड वासियों का रुझान दिखा, बीजेपी के बहुत पुराने कार्यकर्ता दुर्गा अशोक ने शायद पार्टी से टिकट मांगी थी लेकिन पार्टी ने कांग्रेस से बीजेपी में आई अम्बिका को प्रत्याशी बना दिया और बीजेपी का वोटर यहां बंट गया इसका फायदा क्या कांग्रेस को मिलेगा?
यह जानने के लिए 15 फरवरी का इंतजार करना पड़ेगा।
वार्ड नं 15 इस वार्ड में बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने रहें, भूपेंद्र सिंह छाबड़ा को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया तो वहीं कांग्रेस ने राकेश देवांगन को लड़ाया।
दोनों प्रत्याशी के बीच जोरदार टक्कर रहा, जातिगत समीकरण इस वार्ड में कांग्रेस के लिए फायदेमंद हुआ या बीजेपी को लाभ मिला यह 15 फरवरी को पता चल ही जायेगा।
अब बात करते हैं नगर पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशियों की मैंने बार बार अपने खबरों में इस बात का जिक्र किया कि इतिहास शायद दोहराए!
जी हां, आज से 20 साल पहले जब नगर पंचायत खरोरा का प्रादुर्भाव हुआ, निशा अरविंद देवांगन के पति अरविंद बीजेपी नेता हुआ करते थे, बीजेपी ने उम्मीदवार सूरज सोनी को बनाया, पुरानी बस्ती की राजनीतिक टीम ने अरविंद को निर्दलीय लड़ने तैयार किया लड़ाए, जीते और शानदार मतों का अंतर भी दिखा।
इस बार भी ठीक वही हुआ, अभी अभी अरविंद बीजेपी का हिस्सा बने, पार्टी के बड़े नेता ने उसे लड़ने तैयार किया दावेदारी कराई और टिकट काट दी गई!
पुरानी बस्ती टीम फिर सक्रिय हुई निर्दलीय उमीदवार बनने तैयार किया और निशा अरविंद देवांगन मैदान में उतर गईं।
बीजेपी ने अनिल सोनी की पत्नी सुनीता सोनी को टिकट दिया, जबकि पुरानी बस्ती की रश्मि वर्मा को प्रबल महिला दावेदार माना जा रहा था ऐसे में बस्ती की राजनीति बदल गई और बीजेपी कैडर को चोंट लगा इसका खमियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा है!
वहीं कांग्रेस ने मोना बबलू भाटिया को प्रत्याशी बनाया किसी और ने पार्टी से दावेदारी भी नही की, यह पार्टी की एकजुटता थी या कुछ और इस पर चर्चा बाद में करेंगे, मोना बबलू भाटिया के प्रचार में खरोरा के दिग्गज कांग्रेसी गिरीश देवांगन की अनुपस्थिति भी कई सवाल खड़े करती है, एक तरफ उनके चचेरे भाई की पत्नी दूसरी ओर पार्टी की मोना बबलू भाटिया शायद धर्म संकट में रहें!
कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने बबलू का बहुत साथ दिया, पूर्व सांसद छाया वर्मा, पूर्व विधायक अनिता शर्मा और पार्टी के बहुत से बड़े नेताओं ने कमान संभाली, अनिता शर्मा जी तो खुद प्रत्याशी के साथ डोर टू डोर गई जैसा की बीजेपी के विधायक अनुज शर्मा ने किया, नगर पंचायत खरोरा अध्यक्ष का चुनाव ऐसे लड़ा जा रहा था मानो विधानसभा चुनाव हो?
सांसद बृज मोहन अग्रवाल, मंत्री टंक राम वर्मा, बस मुख्यमंत्री विष्णुदेव ही बच गए थे!
इस तरह बीजेपी और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों के लिए जीजान लगा दिए और उसका फल भी दिखेगा।
3 निर्दलीय उम्मीदवारों में पायल राकेश अग्रवाल ने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है शायद भविष्य में उनको लाभ मिले!
हीरा अशोक अमलानी के लिए कहां जाता है उनकी पहुंच मतदाताओं के मन तक है, उनकी भी कोशिश रंग लाने लायक है!
हम बात कर रहे थे 20 साल पहले के इतिहास और आज पर तब अरविंद को पुरानी बस्ती से सियानी के लिए तय किया गया था और इस बार भी, दरअसल खरोरा की राजनीति यहां की पुरानी बस्ती के मतदाताओं पर टिकी है वार्ड 1 से लेकर 13 वार्ड पर गौटिया परिवार का प्रभाव परम्परागत रूप से आज भी बरकरार है ऐसा बुजुर्ग कहते हैं और शायद इसी भावना के चलते निशा अरविंद निर्दलीय प्रत्याशी बनने के लिए तैयार हुईं!
नामांकन के पहले दिन से ही निशा अरविंद को जीत की बधाई मिलनी शुरू हो गई थी।
इस जीत का मुख्य कारण छत्तीसगढ़ियावाद!
प्रचार के बीच में छत्तीसगढ़िया वाद के ब्रांड एंबेसडर अमित बघेल का निशा अरविंद को समर्थन की भीतर खाने जबरदस्त चर्चा रही वहीं अरविंद देवांगन की तेजतर्रार छवि, एक बोलिया जुबान और वादे इरादे के पक्केपन ने मतदाताओं के मन में उनके लिए पहले से जगह बना दी थी।
अग्रवाल समाज, सिख समाज और सिंधी समाज से एक एक प्रत्याशियों ने दिया अरविंद को लाभ?
खरोरा की जनता इस बात से ज्यादा ताल्लुक नही रखती की कौन किस जाति धर्म समाज का है, नगर की खासियत ही यही है कि यहां सभी मजे से एकभाव के साथ रहते हैं, इस लिए यह ज्यादा प्रभावशाली पक्ष नही हो सकता, भले ही जब से छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना जैसी संगठन काम कर रही है, भावनाएं बदली है?
बीते साल के विवादों ने किया जनता को एकमत सही निर्णय के लिए मजबूर?
नगर पंचायत में बीते पांच सालों को सिर्फ विवाद और दलबदल के लिए याद किया जाता है, तालाब गहरीकरण में अनिमियता का विवाद काफी चर्चा में रहा, जनता तय कर चुकी थी, बस्ती की हस्ती जिंदा रखनी है!
और इस तरह निशा अरविंद देवांगन के लिए भारी जनसमर्थन का माहौल तैयार हुआ।
नगर में 11 फरवरी को मतदान सम्पन्न हुआ तीनों मतदान केंद्रों में अरविंद की चर्चा रही!
निशा अरविंद को 3500+ समर्थन के अनुमान राजनीतिक पंडित लगा रहे हैं, 15 फरवरी को EVM से आंकड़े बाहर आने के साथ इस पर मुहर लगेगी!
20 साल पहले क्या हुआ था!
तब फिर अरविंद निर्दलीय प्रत्याशी थे बीजेपी ने गच्चा दिया था, सूरज सोनी को प्रत्याशी बनाया था, सूरज को बाहरी प्रत्याशी का तमगा मिला, वे सुंदरा गांव के चिन्हित कर दिए गए थे ठीक अभी अनिल सोनी को बाहरी प्रत्याशी होने की भावना को प्रबलता मिली।
2004-05 में बीजेपी से सूरज सोनी को 984 वोट मिले थे, कांग्रेस के ठाकुर राम वर्मा जो पुरानी बस्ती के पुराने राजनीतिक घराने से आते हैं को 784 वोट मिले थे और अरविंद 1490 वोट से जीत कर नगर पंचायत के पहले अध्यक्ष बने तब नगर में कुल 3800 मतदाता थे।
11 फरवरी को नगर में 6059 मतदाताओं ने मताधिकर का प्रयोग किया है ऐसे में जब निशा अरविंद को 3500+ की संभावना जताई जा रही है तब बीजेपी कांग्रेस को क्रमशः कितने वोट मिलेंगे इसके लिए 15 फरवरी के इंतजार करना पड़ेगा।
बीजेपी के आरोप ने बिगाड़ा खेल?
चुनाव प्रचार के पहले दिन से बीजेपी नेताओं ने निर्दलीय प्रत्याशी निशा अरविंद को ही अपना प्रतिद्वंदी माना ठीक यही हाल कांग्रेस का भी रहा!
बीजेपी के नेताओं ने अरविंद पर अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी जमीन पर कब्जा का आरोप लगाया और यही दांव बीजेपी के लिए उल्टा पड़ गया?
नगर में गौंटिया परिवार पर अप्रत्यक्ष आरोप जनभावना को आहत करने वाला साबित हुआ इसका प्रभाव यह पड़ा की बीजेपी के वार्ड वार कैडर सदस्यों ने भी कन्नी काट ली?
तो वहीं कांग्रेस ने अरविंद के एक बोलिया और कड़े वक्तव्य को प्रचारित किया लेकिन यह भी कारगर साबित नही हुई!