हम लड़के कभी बता नही पाते, पिता के लिए कितना सम्मान कितना प्यार होता है हमारे दिल में… जब बताना चाहते हैं तब पिता साथ नही होते!
बात बहुत पुरानी है मैं 9वीं क्लास में था और बाबूजी के साथ पेपर बांटने का काम करता था, खरोरा में तब टॉकीज भी था और मुझे फिल्में देखने का बड़ा शौक भी, बाबूजी यानी रथ कुमार सीधे साधे चुपचाप से रहने वाले कभी गुस्से में नही देखा जब तक जिंदा थे, अब नही हैं!
तब मैं अर्ली मॉर्निंग 3 बजे उठ कर पेपर हॉकरिंग करता और शाम को चिन्हित दुकानों से पेपर का पैसा वसूली करता, हर दिन जेब मे बहुत सारे पैसे होते, वसूली का पैसा बाबूजी को देकर उनसे अपना हिस्सा 5 रुपिया रख लेता था, यही मेरी दिनचर्या थी इस बीच का पूरा समय हाईस्कूल में बीतता था।
एक दिन मेरी लड़ाई एक दुकानदार से हो गई, और इतनी हो गई कि हाथ छूट गया, खबर बाबूजी को लगी तो बहुत नाराज हुए और मेरा काम बंद कर दिए, यह वो दौर था जब अखबारों के संवाद पत्र हुए करते थे जिसमें खबर लिख कर डाक से या हर दिन रायपुर आने जाने वाली जीप से खबरें भेजी जाती थी और ये काम मैं करता था और तब से मैं खबरें लिख भी रहा हूं!
मेरा काम बंद हो चुका था बाबूजी मुझसे बात तक नही कर रहे थे मैं बहुत उदास रहने लगा उस वक़्त पेपर की एजेंसी बलराम नशीने दादा की हुआ करती और श्रमजीवी पत्रकार संघ के मुखिया गिरीश देवांगन भैया हुआ करते थे और मैं इन्ही की टोली का छोटा हिस्सा हुआ करता था, इस टोली की बैठकी अभी के डॉक्टर महेंद्र देवांगन जी के हॉस्पिटल के सामने खंडहर पड़े तब के शानदार कार्यालय में हुआ करता, जिसमें कभी धुरंधर STD भी संचालित रहा।
मैं बाबूजी के बिना एक पल भी नही रह सकता था उनसे बात करने की कोशिश करता पर वे मुझे अनदेखा कर देते और मैं चुपचाप सा देखते रहता, इस बात को सप्ताह गुजर चुके थे, मेरा कार्यालय में बैठना बंद हो गया, पेपर की वसूली भी नही कर पा रहा था तो पैसे भी नही मिलते थे, क्या करता शाम का समय बसंत चंद्राकर (गेलार्ड टेलर) चाचा के यहां डिस्क चैनल पर फिल्में देखते कट रही थी तब उनका दुकान अरुण बुक डिपो के सामने सरदार जी के बिल्डिंग में थी और बगल में जगत होटेल हुआ करता था।
एक दिन बाबूजी पेपर की वसूली कर रहे थे और एक पान ठेले पर रुके थे मैं भी वहीं से गुजर रहा था, मुझे देख कर पान ठेले वाले ने आवाज दी तो मैं रुक गया, बाबूजी भी वहीं खड़े थे।
अरे गज्जू क्या हुआ आजकल तुम नही आ रहे?
नही चाचा, कहते हुए मेरा सर झुक गया।
अरे ठीक किया न उस दिन मैं तो था वहीं, रथ भाई को गाली दे रहा था मुझे भी बुरा लगा और तूने ठोक दिया बहुत सही किया!
इतना सुनकर बाबूजी मुझे घूरने लगे, मैं चलता हूं चाचा कहते हुए मेरी साइकल आगे बढ़ गई और दूसरे दिन से मेरा काम शुरू हो गया।
बाबूजी ने मुझसे बात की और कहा कि कोई मुझे गाली दे रहा हो तो तुझे मारपीट करने की क्या जरूरत?
मैंने बस इतना ही कहा, मैं आपका बेटा हूं और कोई मेरे पिता को मेरे सामने गाली नही दे सकता।
बाबूजी के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी जो आज भी मेरे आंखों में कैद है।
पिता के लिए बेटे के दिल में कितना सम्मान होता है बेटा ही जानता है, इस शीर्षक पर उनका आलेख मैंने रोते हुए उनके सिरहाने बैठ कर पढ़ा वो दिन उनके भौतिक साथ का आखरी दिन था।
गजेंद्ररथ ‘गर्व’ 9827909433
Gajendra Rath Verma ‘GRV’