जमीनों की फर्जीवाड़े को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहने वाले नगर पंचायत खरोरा में एक और बड़ा फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है।
मामला सालों पुराना है लेकिन अब जाकर रहस्य खुल रहा है। दरअसल खरोरा के कुंभकरण सेन और उनके पारिवारिक लोगों को सरकार ने पौनी पसारी के लिए सीलिंग की जमीन आवंटित की थी, जिस पर उन्हें कास्तकारी कर जीवन यापन करना था।
बाकायदा यह जमीन उनके परिवार वालों के नाम पर दर्ज हुई थी लेकिन कुछ सालों बाद जब उस जमीन को ऑनलाइन रिकॉर्ड पर देखा गया तब पता चला की उक्त जमीन बिक चुका है, जबकि उस जमीन को बिना कलेक्टर आदेश के बेचा जाना संभव ही नहीं है।
आखिर वह जमीन बिकी तो बिकी कैसे? जब इस बात की दस्तावेजों में तफ़्तीश की गई तब परिवार के लोगों ने बताया की सालों पहले रायपुर का एक जमीन दलाल उनके घर आया था और जमीन को बेचने के लिए कलेक्टर से अनुमति दिलाने का झांसा देकर उनके परिवार वालों से कागज पर दस्तखत लिए गए और उन्हें कुछ पैसे भी दे दिया गया।
पीड़ित ने आशंका जताई है की हो ना हो उक्त जमीन दलाल ने फर्जी दस्तावेज तैयार किए होंगे और वह जमीन किसी अन्य को बेच दिया होगा लेकिन इस पर सवाल यह उठता है कि आखिर बिना कलेक्टर की अनुमति के यह जमीन बिकी कैसे, क्योंकि सरकारी गाइडलाइन के मुताबिक सीलिंग की जमीन बेचने के लिए जिला कलेक्टर से अनुमति लेनी पड़ती है, ऐसे में एक बड़े फर्जीवाड़े की आशंका जताई जा रही है, पीड़ितों ने इसकी शिकायत पुलिस में भी की है।
इस पूरे मामले में रायपुर के किसी सलीम खान नाम के आदमी की भूमिका संदिग्ध है जिसके नाम पर पावर ऑफ अटॉर्नी बना है पीड़ितों का आरोप है की यही वह जमीन दलाल है जिसने जमीन की बिक्री के लिए कलेक्टर से परमिशन लेने की बात कह कर कागजों पर दस्तखत कराया था।
राज्य निर्माण के बाद से ऐसे मामलों की प्रदेश में बाढ़ आ गई है जहां गरीब परिवारों को दी हुई सीलिंग की जमीन भू माफिया उन्हें कुछ पैसों का लालच देकर कूट रचित दस्तावेजों के माध्यम से बेच रहे हैं।
खरोरा तहसील से संबंधित ऐसे ही एक मामले में कुछ महीने पहले कार्रवाई करते हुए राजस्व अमले ने सिर्री गांव के कोटवारी जमीन का बिक्री नामा रद्द किया था।
ज्ञातव्य हो की नगर पंचायत खरोरा के नए बस स्टैंड के सामने वाली कोटवारी जमीन पर भी सालों पहले कुछ वैसा ही मामला हुआ था जिसकी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी गई और अंततः वह जमीन नगर पंचायत खरोरा की संपत्ति बनी, यहां पर सोचने वाली बात यह है कि आखिर राजस्व कामकाज में ऐसा क्या लुप होल है जिसका फायदा उठाकर भू माफिया सरकारी जमीनों की खरीद फरोख्त कर रहे हैं और करोड़ों में खेल रहे हैं!
बताते चलें की खरोरा में जिस कोटवारी जमीन की हम बात कर रहे हैं वह कोई दो चार एकड़ नहीं है बल्कि पूरा 10 एकड़ जमीन का मामला था जिसकी कीमत आज अरबो रुपए की है, जहां आज भव्य सरकारी मंगल भवन बनाया जा चुका, बाकी जमीन पर सरकार की महती योजना से कृष्ण कुंज बनाया गया है और बंचि जमीन में खरोरा का नामी गुरुवार बाजार लगता है, कहीं तब लड़ाई नही लड़ी जाती तो यह बेशकीमती जमीन भी आज भूमाफियाओं के कब्जे में होती!किसान की सीलिंग जमीन कूट रचित दस्तावेजों के माध्यम से बेचने का यह मामला संज्ञान में आते ही संबंधित तत्कालीन पटवारी तहसीलदारों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह काम किसी एक अकेले जमीन दलाल का नहीं हो सकता बल्कि इसमें राजस्व विभाग के अधिकारी कर्मचारियों सहित किसी रसूखदार भूमाफिया की मिलीभगत जरूर होगी जिसके कारण सीलिंग में प्राप्त सरकारी जमीन का किसी दूसरे के नाम रजिस्ट्री होना पाया गया है, जो एक आपराधिक मामला है।
खरोरा तहसील की बात करें तो यहां जमीनों की खरीदी बिक्री में भारी गड़बड़ी है! राजस्व विभाग के ही अधिकारी कर्मचारी इस तरह के अवैधानिक कामों में लिप्त हैं जिसकी जांच की जाए तो एक बड़े भूमाफिया और भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारियों की कारगुजारियों का भंडाफोड़ हो सकता है।
फिलहाल इस मामले की सूचना पुलिस को दी गई है।
जांच जारी है जल्द ही और खुलासे किए जायेंगे: प्रदेशवाद