दीप उत्सव जोहार
आओ मनाएं दीप उत्सव, धर्म विजय का ये महोत्सव मन, वचन और कर्म को, जाने मर्यादा मर्म को
वो व्याख्या सच हो, कथा हो, या कोई मन की व्यथा हो
जिसमें विजय हुई धर्म की, जो हारा था वो क्रोध था
वो क्रोध अब भी जी रहा है, हम में तुम में और सबों में
उस मन: अंश का लोप कर दो, क्रोध का व्यंग्य में विलोप कर दो
जीवन-मरण के इस चक्र में, आओ करें कुछ और भी
ज्ञान,मान,अभिमान छोड़, प्रेम-प्रथा प्रचलित करें
मैं विशेष, विशेषज्ञ मैं !इस भ्रम में मन क्यों विचलित करें
ये पर्व है प्रकाश का, संबंधों में विश्वास का
आओ लक्ष्मी पूजन करें, गंगणपति वंदन करें, विद्या का अर्जन करें
शुभ दिपावली
गजेंद्ररथ गर्व