1 नवंबर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस
आज छत्तीसगढ़ को 24 साल पूरे हो गए, आज ही के दिन सन 2000 में छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया।
छत्तीसगढ़ कई मायनों में एक ऐतिहासिक स्थल है, भगवान राम के ननिहाल के रूप में यह प्रदेश पूरे विश्व में जाना पहचाना जाता है, पुरातन काल में यह दक्षिण कौशल के नाम से जाना जाता था माता कौशल्या यहां की बेटी हुई और प्रभु राम छत्तीसगढ़ के भांजे कहलाए और इसीलिए छत्तीसगढ़ में यह परंपरा जीवंत है कि यहां पर भांजे भांजियों का चरण छूकर सम्मान किया जाता है।
यह कौशल प्रदेश चारो ओर से जंगल और पहाड़ों से घिरा है इस प्रदेश की खूबसूरती नदिया पर्वत पहाड़ सहसा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
छत्तीसगढ़ खनिज संपदा के लिए भी जाना जाता है लोहा मैग्नीशियम कोयला सहित कई तरह के खनिज छत्तीसगढ़ महतारी के आंचल में दबे पड़े हैं और शायद यही कारण भी है कि छत्तीसगढ़ कॉर्पोरेट का एक बड़ा बाजार बन चुका है!
हसदेव जंगल का विनाश जारी है!
कोरबा स्थित हसदेव का जंगल छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहा जाता है जहां हजारों एकड़ में फैले वनस्पति वन और अन्य जीव जंतु निवास करते हैं लेकिन यह भूमि खनिज संपदा के दोहन का सबसे बड़ा अड्डा भी बन चुकी है बीते कुछ वर्षों में हसदेव के जंगल को समूह नष्ट करने की कोशिश जारी है यहां से कोयला खनन के लिए हसदेव के जंगलों को लगातार उजाड़ा जा रहा है जिसे लेकर छत्तीसगढ़ के वनवासी और पूरा प्रदेश आंदोलित है लेकिन फिर भी सरकार जनभावना का सम्मान करते नहीं दिख रही है।
छत्तीसगढ़ कला संस्कृति साहित्य और अपनी विविधताओं के कारण भी जाना जाता है “कोस कोस में पानी बदले पांच कोस में वाणी” यह लाइन स्पष्ट यहां की विविधता को प्रदर्शित करती है, बस्तर का अबूझमाड़ इस बात का परिचायक है कि यहां आज भी आदिम संस्कृति जिंदा है।
वहीं एक ओर छत्तीसगढ़ का एक हिस्सा डिजिटल युग के साथ आगे बढ़ रहा है लगातार यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत हो रहे हैं लेकिन उसके साथ ही यहां की विरासत कमजोर हो रही है!
छत्तीसगढ़ी इस प्रदेश की मूल भाषा है लेकिन आज भी इस प्रदेश की मूल भाषा के रूप में हिंदी को ही जाना जाता है, 36 किलों के कारण इस प्रदेश का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा है और यह एक ऐतिहासिक घटना है, यह प्रदेश अपने भीतर कई रहस्यों को छिपा कर रखी है, इस प्रदेश में लगातार बाहर प्रदेशों से लोगों का आगमन हो रहा है इसके चलते यहां सांस्कृतिक विभिन्नताएं बढ़ रही है, ऐसे में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति का लोप होते जा रहा है जो चिंता का विषय है।
आज छत्तीसगढ़ निर्माण के 24 वर्ष पूरे हो चुके हैं ऐसे में इस बात का चिंतन जरूरी है की इन बीते वर्षों में छत्तीसगढ़ ने अपनी भाषा संस्कृति और प्रतिमानों को लेकर क्या विशेष किया है, कृषि प्रधान राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ धान का कटोरा भी कहा जाता है यहां की लगभग आबादी कृषि पर आश्रित है और सीधे-साधे भोले भाले लोग खेती और मजदूरी में रमे रहते हैं जिसका पूरा फायदा बाहर प्रदेश से आने वाले कुटिल प्रवासी उठा रहे हैं और लगातार इस प्रदेश के भोले भाले जनता का हक मार कर खुद को स्थापित कर रहे हैं, यह बात जितनी जल्दी मूल छत्तीसगढ़ियों को समझ में आए और इस विषय में सरकारें काम करें तो निश्चित ही छत्तीसगढ़ की अस्मिता को बचाया जा सकता है, यहां जमीनों की खरीद फरोख्त रोकने और आरक्षण को विशिष्ट पहचान देने के लिए 1952 का मिशल लागू करने की मांग गाहे बगाहे उठती रही है लेकिन सरकारें खुद ही यहां की खनिज लूटने में लगी है, वह ऐसा करेंगे इस बात पर शंका है!
लेकिन यहां की जनता अगर एक मत और एकजुट हो जाए तो निश्चित ही इस विषय पर काम होगा और यहां की जमीनों को बाहरी प्रदेश के लोगों को बेचने पर रोक लगाई जा सकती है, जिससे यहां की जैव विविधता के साथ ही आदिम संस्कृति को भी संरक्षित करने की दिशा में सफल प्रयास साबित हो सकता है।
जय छत्तीसगढ़
गजेंद्ररथ गर्व