नगर खरोरा की सिद्ध शक्ति मां महामाया सब की मनोकामना पूर्ण करने वाली सिद्धि दात्री मां महामाया मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है कहा जाता है कि आज का नगर खरोरा डीह में विराजमान था जो छडिया नहरडीह मार्ग में खूंटाखार के पास टीले पर विराजमान है, यहीं से विस्थापित हो कर पूरे मान मनौती के साथ वर्तमान नगर के पुरानी बस्ती में स्थापित है, ऐसा मानना है।
आज हम जिस नगर खरोरा को शहर के रूप में देखते हैं तब वह पूरा का पूरा जंगलों से घिरा हुआ रहस्यमयी क्षेत्र था, जहां एक गुफा नुमा सुरंग आज के कारिया दामा मंदिर से सिंगादुरिया केसला होते हुए ऐतिहासिक नगरी सिरपुर के गंधेश्वर महादेव मंदिर पर खुलती थी!
ऐसी मान्यता है की आज का नगर खरोरा तब राजा खरदूषण का कोषागार हुआ करता था और महादेव के महाभक्त राजा खरदूषण इसी सुरंग से होकर हर सुबह देवों के देव गंधेश्वर महादेव को जल चढ़ाते थे!
जंगलों से घिरे कोषागार गुफा के पास राजा का आरामगाह भी हुआ करता था जहां राजा अक्सर रानी के साथ समय बिताने आया करते थे इसी गुफा के द्वार पर उनकी कुलदेवी काली स्वरूपा करिया दामा माई का मंदिर था जो वर्तमान में अपने मूल स्थान पर विराजित है, इसी जगह पर आज भी खजाना गड़े होने की किवदंती प्रचलित है!
80 के दशक में जब एक परिवार मकान बनवाने नीव खोद रहा था तब कुछ मटकों में पुराने जमाने के सिक्कों से युक्त लगभग आठ दस की संख्या में पात्र मिले थे जिसका गवाह मैं खुद हूं, बचपन में हम कुछ दोस्त उसे देखने भी गए थे।
कैसे बसा खरोरा?
कहा जाता है की कुछ सौ साल पहले जब यह जगह पूरा जंगल था और खरराडीह नाम का गांव आज के खूंटाखर की जगह पर स्थापित था तब आसपास जलस्रोत की भारी कमी के चलते ग्रामीण परेशान थे और लगातार गांव छोड़कर अन्य जगहों पर विस्थापित हो रहे थे, तब उस समय एक किसान का पशुधन भैंसा गुम हो गया जिसे बहुत खोजने के बाद भी नहीं मिला पर कुछ दिन बीतने पर पशुधन घर वापस आ धमके, किसान ने देखा भैसे पूरी तरह कीचड़ से सने थे उसने अंदाजा लगाया जरूर कहीं कोई पोखर या तालाब जैसा जलस्रोत होगा और दूसरे दिन किसान भैंसों के पीछे पीछे चल दिया, कुछ एकात कोस की दूरी पर भैसे एक तालाब में थे, किसान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह लौट कर उस तालाब के बारे में गांव वालों से चर्चा करता है, सभी फिर से तालाब को देखने आते हैं जो भारी गर्मी में भी जल युक्त था और इस तरह ग्राम प्रमुख ने पूरा गांव उस तालाब के आसपास बसाने की योजना बना लेता है।
वर्तमान में हम उस तालाब को ताला तालाब के नाम से जानते हैं, शायद तलातल पानी भरे होने के चलते तालाब का नामकरण भी ताला तालाब रख दिया गया हो!
और इस तरह ताला तालाब के आसपास पुरानी बस्ती खरोरा स्थापित हुई!
हो न हो खूंटाखार के इसी डीह से आज की सिद्ध शक्ति मां महामाया को तब के हमारे पुरखों ने वर्तमान स्थल पर विराजित किया होगा और ग्राम देवी की आराधना चैत्र नवरात्र पर्व की आदिम परंपरा आज तक मानी जा रही है और इसी क्रम में मां महामाया का स्वरूप भी सिरजाया गया, इससे पहले हमारे पुरखे शक्ति युक्त पत्थर के टीले को वंदन करते रहे होंगे!
1992-94 के आस पास बनी मां महामाया मंदिर समिति
तब के ग्राम पंचायत खरोरा के बुजुर्गों ने मंदिर समिति का निर्माण 90 के दशक में किया और मंदिर को सजाने संवारने के साथ व्यवस्था बनाने योजना बनाई, ज्योतिकलश के लिए शुल्क निर्धारित करने के साथ ही मंदिर निर्माण, मां महामाया मूर्ति निर्माण, श्रृंगार व्यवस्था के साथ ही पूजा पद्धति का संचालन किया और आज इस अद्भुत को हम आत्मशक्ति के रूप में, नगर देवी मां महामाया को पालन करने वाली माता के रूप में पूजते हैं आराधना करते आ रहे हैं।
तब मां महामाया मंदिर में एक नीम के पेड़ को माना जाता था शक्ति वृक्ष!
90 के दशक में मंदिर का स्वरूप आज जैसा नहीं था बल्कि एक ग्राम व्यवस्था में नीम के एक वृक्ष के तने पर बंदन से सजी पाषाण की मूर्ति स्थापित थी इसके आगे एक कमरा था वहां स्थापित थी मां महामाया।
मनोकामना पूर्ति के कई जीवंत उदाहरण!
मां महामाया से सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना मनौती जरूर पूरी होती है, किसी तरह की कोई शारीरिक पीड़ा, सामान गुमना या कोई भी तरह की समस्या में नगरवासी मां के चरणों में अपनी पीड़ा रखते हैं और मां महामाया उसे खुशियों में बदल देती है ऐसा मानना है नगर के भक्ति की।
मां महामाया पालक है नगर खरोरा की, उन्ही के आशीष का चमत्कार है की आज का नगर खरोरा लगातार शहरीकरण के साथ अपनी मानवीय मूल्यों की चमक बिखेर रहा है।
मां महामाया मंदिर समिति ने बनाई राम कोठी!
तब के गांव खरोरा में दान के रूप में अनाज ही मिला करते थे, प्रायः सभी गांववासी किसान थे खेती-बाड़ी करते थे और तब वस्तु विनिमय का जमाना था ऐसे में मंदिर में माता को धान, गेहूं दाल, चावल का चढ़ावा चढ़ता था और कुछ कपड़े चढ़ाए जाते थे इस तरह मंदिर समिति ने राम कोठी की स्थापना की जो जरूरत पर किसानों को अनाज दिया करती और बदले में उनसे खेती के बाद उनकी श्रद्धा भक्ति अनुसार वापस मांग ली जाती थी।
यही परंपरा आज भी जारी है जहां पर दान में मिली राशि जरूरतमंदों को बहुत ही नाम मात्र के ब्याज पर दे दी जाती है और साल खत्म होते ही चैत्र पर्व पर जमा कर दी जाती है।
इस तरह से यह व्यवस्था आम जनों के लिए कारगर सिद्ध हो रही है जरूरत पर लोगों को किसी बैंक की तरह रुपए उधार मिल जा रहे हैं और इससे कई तरह के व्यवसायिक उपक्रम किसान और मजदूर कर पा रहे हैं।
मां महामाया मंदिर समिति के द्वारा लंबे समय तक एक शिक्षण संस्थान भी संचालित किया जाता रहा है। विवेकानंद कन्या माध्यमिक विद्यालय के रूप में शुरू की गई शैक्षणिक संस्थान आगे जाकर हाई स्कूल शिक्षा का भी माध्यम बनी जहां नगर की बेटियां बहुत ही नाम मात्र शुल्क पर शिक्षा पा रही थी लेकिन वर्तमान में यह स्कूल अभी बंद है, जिसे जल्द शुरू करने समिति प्रयास कर रही है।
मां महामाया नगर की पालक माता है, प्रत्येक नगर वासी के साथ ही अब आसपास से भी लोग मां महामाया मंदिर पहुंच कर मनौती मांगते हैं और सिद्ध शक्ति मां सभी की मनोकामना पूरी करती हैं।
आलेख: गजेंद्ररथ गर्व 9827909433
वीडियो में देखिए मां महामाया मंदिर का वैभव…