13 नवंबर को रायपुर दक्षिण उपचुनाव के लिए मतदान होना है, इस उप चुनाव में प्रदेश की एकमात्र प्रादेशिक पार्टी जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी प्रत्याशी गोपी साहू के नामांकन रद्द होने की खबर पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए निराशा भरी खबर थी पर क्या आपको पता है, बीते वर्ष विधानसभा चुनाव में रायपुर दक्षिण से प्रत्याशी रहे मनीष कुमार ठाकुर का नामांकन पत्र इस उपचुनाव भी स्वीकार्य है!
लेकिन इस बार मनीष ठाकुर JCP से नही बल्कि हमर राज पार्टी से प्रत्याशी बनाए गए हैं!
आप को जानकर आश्चर्य होगा कि यही मनीष ठाकुर एक वर्ष पहले ठीक इसी समय जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के प्रत्याशी बनकर चुनाव मैदान में थे।
और आज रायपुर दक्षिण उपचुनाव में भी प्रत्याशी है पर पार्टी अलग है।
हमर राज पार्टी वही पार्टी है जो विधानसभा चुनाव के समय ही JCP के लगभग थोड़े पहले अस्तित्व में आई।
छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना से अलग होकर आदिवासियों ने अपनी अलग पार्टी हमर राज पार्टी के नाम पर बनाई और इसी वक्त CKS ने भी अपनी पॉलिटिकल विंग JCP को लॉन्च किया था।
आखिर जब छत्तीसगढ़ियावाद ही लक्ष्य था फिर हमर राज नाम से आदिवासियों को अलग पार्टी बनाने को जरूरत क्या पड़ी?
क्या भीतर खाने कोई लड़ाई जारी थी?
कहा जाता है की बूढ़ादेव के नाम पर छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना का कांसादान अभियान की शुरुआत का आइडिया आदिवासी नेताओं का था पर इस अभियान को टेक ओवर CKS के OBC नेता कर रहे थे जो बड़े आदिवासी नेताओं को रास नहीं आ रहा था, उन्हें लग रहा था CKS के नेता जो सभी लगभग OBC वर्ग से आते हैं उनका राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं!
वहीं दूसरी ओर CKS के नेता अपनी डफली अपना राग अलाप रहे थे, आदिवासी नेताओं का आरोप था की वे आदिवासियों के इतिहास को अपना बता रहे थे वो नाम तो आदिवासियों का ले रहे थे पर उनका छुपा मकसद कुछ और था, जिसकी भनक आदिवासी नेताओं को लग चुकी थी।
वहीं एक ओर सतनामी समाज भी CKS से कन्नी काट रहा था उनका भी आरोप था की उनके गुरुओं के नाम पर CKS के OBC नेता अपना राजनीति चमका रहे हैं!
इस तरह छत्तीसगढ़ के इन दो मजबूत समाजों ने CKS से दूरी बनानी शुरू कर दी थी।
तब CKS के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल और उनकी कोर टीम पर आरोप भी लगा की वे मनमर्जी करते हैं!
CKS में सभी वर्ग से लोग लगातार छत्तीसगढ़ियावाद के लिए काम कर रहे थे जो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ा खतरा था, ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस के कूटनीतिज्ञों ने चाल चली और आदिवासियों को OBC नेताओं का डर दिखा कर उनकी अलग पहचान पर उन्हें बरगलाना शुरू किया फलस्वरूप वे CKS से अलग हो गए!
ठीक इसी तर्ज पर सतनामी समाज को भी बीजेपी ने साध लिया और समाज के गुरुओं को पार्टी में शामिल कर, छत्तीसगढ़ियावाद को कमजोर करने की साज़िश की और कुछ हद तक सफल भी हुए!
वहीं दूसरी ओर CKS में भी इसी समय राजनीति दल की घोषणा हुई पर इस बात की भनक CKS सेनानियों को नही थी की CKS प्रमुख अमित बघेल ने अपने चाचा विष्णु बघेल की पहले से बनाई पार्टी जय छत्तीसगढ़ पार्टी को ही नाम बदल कर जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी बनाई है, पार्टी प्रमुखों ने इसे अपनी खुद की बनाई पार्टी बताई और चुनाव भी लड़े पर यह रहस्य खुला और तरह तरह के प्रश्न उठने लगे, साहू समाज के CKS में जुड़े लोगों ने सवाल किए की जब पुरानी पार्टी को ही नामांतरण करना था तब ताराचंद साहू जी की स्वाभिमान मंच क्या बुरी थी?
आरोप यह भी लगे की कुर्मियों की एकक्षत्र राज वाली CKS अपनी पॉलिटिकल विंग भी अपने कब्जे में रखना चाहती थी इसलिए अमित बघेल ने अपने चाचा की पुरानी पार्टी पर नया कवर चढ़ा दिया!
यही बात आगे चलकर पार्टी में टूट का कारण भी बनी और एक दूसरी क्रान्ति सेना गैर राजनीतिक संगठन के टैग के साथ कोरबा से संचालित होने लगी।
एक बड़ा सवाल यह भी है की आखिर जब रायपुर दक्षिण उपचुनाव में हमर राज पार्टी ने नामांकन दाखिल किया था तो JCP ने अपना प्रत्याशी क्यों उतारा?
क्या दोनों छत्तीसगढ़ियावादी पार्टी एक दूसरे के विरोधी हैं?
क्या दोनों पार्टी के छत्तीसगढ़ियावाद में कोई अंतर है?
असल में छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश के रूप में जाना जाता है और अपनी अस्मिता के लिए जूझ रही है!
इस बीच बीजेपी और कांग्रेस से बाहर किए नेता भी अपने लिए जमीन तलाश रहे थे, ऐसे में उनको प्रदेश निर्माण के दस सालों बाद याद आया की यह प्रदेश तो छत्तीसगढ़ियों के लिए बनी है, उनको यही बड़ा मुद्दा लगा और उसी समय कुछ नौजवान भी पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के आउटसोर्सिंग नीति का विरोध कर रहे थे, कहा जाता है की उन्ही नौजवानों ने CKS नाम की संस्था बनाई थी और सरकार में व्याप्त बाहरीवाद का विरोध कर रहे थे!
अपनी अपनी पार्टियों से बाहर किए गए नेताओं ने भी उन नौजवानों का समर्थन किया और एक मजबूत गैर राजनीतिक संगठन छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना का उदय हुआ।
जब संगठन की राजनीतिक परिवर्तन की बारी आई तब आदिवासी समाज ने शायद अपनी अलग शर्तें रखी और शायद CKS के OBC मुखियाओं को यह नापसंद लगी और इस तरह एक साथ छत्तीसगढ़ियावाद की लड़ाई लड़ने वाले, दो अलग अलग राजनीतिक दलों में बंट गए!
जिस व्यक्ति ने साल भर पहले JCP से चुनाव लड़ा उसी ने अब हमर राज से नामांकन दाखिल किया और दूसरी ओर JCP के प्रत्याशी का नामांकन रद्द हो गया!
इस बात पर भी JCP के कार्यकर्ताओं में भारी बहस चली जो शायद अब तक जारी भी है?
तो क्या अब JCP, हमर राज से प्रत्याशी मनीष का समर्थन कर रही है? जो इससे पहले JCP के प्रत्याशी थे यह सवाल बना हुआ है।
छत्तीसगढ़ में प्रादेशिक पार्टियों का भविष्य
छत्तीसगढ़ में जिस गहराई तक राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने पैठ बनाई है या यूं कहें छत्तीसगढ़ियों के भीतर प्रादेशिक पार्टी को स्वीकार करने का कोई कोना ही नही है?
शायद तभी अब तक जितने भी प्रादेशिक पार्टी मैदान में आई बिखर गई, क्या इसका मुख्य कारण पार्टी बनाने वाले नेताओं की कुटिल मनसा रही, जिन्हें उनके पहले की पार्टियों ने अलग किया, तो उन्होंने अपनी ही पार्टी के सामने एक पार्टी तान दी और जनता ने उन्हें अस्वीकार भाव से नकार दिया?
एक बात और गौर करने वाली है, प्रदेश में जितनी भी प्रादेशिक पार्टी बनी उसे बनाने वाले किसी न किसी पार्टी से ठुकराए हुए थे, अब तक किसी ऐसे व्यक्ति या नेतृत्व ने यह कदम नही उठाया जो समाज, परिस्थिति और निमगा छत्तीसगढ़ियापन से सिरजा हो, यही बात जनता के मन की पीड़ा है, जिन्हे लगता है की ठुकराए लोगों में अपने अहम साधने की ललक होती है न कि स्वच्छ और ईमानदार राजनीति की?
अभी भी शायद असल छत्तीसगढ़ियावाद का इंतजार आम छत्तीसगढ़िया कर रहा है?
देखना होगा गुण्डाधुर और वीर नारायण की इस धरती से कौन निमगा छत्तीसगढ़िया प्रदेशवाद का मशाल जलाता है!