ये तुम, मैं कुछ भी नही!
जो हमारा नही उसे प्रकृति हमसे दूर कर ही देती है और शायद यही हमारे लिए भी अच्छा होता है।
आज मैं बहुत दिनों बाद रश्मि से मिलने जा रहा हूं, बहुत सी पुरानी यादें आज एकबार फिर से जीने लगा हूं, हम अक्सर मेहनत, तकदीर, किस्मत जैसी बातों को लेकर भ्रम में रहते हैं, जो मिलता है हमारी मेहनत और जो नही मिलता वो हमारी तकदीर हो जाती है।
तुम सीधे से क्यों नही कह देती रश्मि की तुम्हें राहुल से प्यार है, ये आखरी शब्द था जो मैंने रश्मि से की थी, राहुल, रश्मि का क्लासमेट था और मैं रश्मि का पड़ोसी, बचपन का दोस्त।
मैं रश्मि के लिए क्या था मैं कभी जान ही नही पाया पर रश्मि मेरे लिए सब कुछ थी, जिंदगी थी मैंने रश्मि के पहले और बाद में भी, कभी किसी को सोंचा ही नही शायद पर जिंदगी की फिल्म में कब किस मोड़ पर ट्रायएंगल बन जाए कुछ कहा नही जा सकता।
मुझे हमेशा से ऐसा लगा की रश्मि मेरी है पर पता नही कब वो राहुल की हो गई और मैं….मैं कुछ भी न रहा…।
घरवालों ने हमेशा हमें सपोट किया वो भी चाहते थे कि हम एक हो जाएं पर जब किसी को किसी और से प्यार हो जाए तब जिंदगी कुछ अलग मोड़ ले लेती है ठीक ऐसा ही हुआ मेरे साथ।
मैंने सोंचा ही नही था कि जिस दोस्त को रश्मि मुझसे मिलवा रही है वो मेरे दर्द का कारण बनेगा।
नमन ये राहुल है, मेरा क्लासमेट हमदोनों साथ हैं कॉलेज में…हैलो राहुल मैनें हाथ आगे बढ़ा दिया था पर मुझे कहां पता था वो हाथ मुझसे मेरी जिंदगी छिनने के लिए आगे बढ़ा था।
मैं जब कभी रश्मि से मिलने उसके घर पर जाता वह राहुल से चैट करती मिलती, मुझे बहुत गुस्सा आता और मैं मन मसोज कर रह जाता खुद के भीतर असुरक्षा का भाव प्रबल हो रहा था मुझमें और मैं समझ ही नही पा रहा था कि आखिर रश्मि क्या चाहती है, उसकी फिलिंग मेरे लिए क्या है मैं जानने की कोशिश करता पर कभी जान ही न पाया और खुद को मरिचिका में फंसाए रखा मैनें।
बात तब बिगड़ी जब रश्मि कॉलेज के दोस्तों के साथ कहीं टूर पर गई थी, मुझे कोई खबर नही थी पर मैं अपने काम के सिलसिले में वहीं पहुंचा हुआ था जहां रश्मि ने अपने दोस्तों के साथ आने की बात कही थी, मुझे लगा था कोई स्टडीटूर होगा पर मैं गलत था रश्मि के साथ यहां सिर्फ राहुल था, रश्मि के इस झूठ ने मेरे भीतर बहुत कुछ तोड़ दिया था, मैं उनसे वहां मिले बगैर ही लौट आया था।
मुझे इस बात का ज़रा भी दुख नही था कि रश्मि मुझसे फ्लड कर रही है, दुख इस बात का ज्यादा था की वो मुझसे प्यार करने का दिखावा क्यों कर रही थी!
उस दिन के बाद ज़िंदगी के मायने जैसे बदल चुके थे, बहुत सी रातें मैंने सिर्फ यही सोंचते हुए काट दिए थे कि कहीं ये मेरी सोंच या मेरी आंखों का धोखा तो नही, पर नही ये बदलाव था, ये वो वक्त था जो मुझे या तो तोड़ने वाली थी या फिर मेरे साथ वो होने वाला था जो मेरी ज़िंदगी को मायने देने वाली थी।
हुआ भी वैसा ही, मैंने ठान लिया था मैं रश्मि से बात करुंगा और किया…
रश्मि सच बताना, तुम्हारे और राहुल के बीच कुछ है ना,
रश्मि सहज थी उसने बस इतना ही कहां, वो मेरे कॉलेज का दोस्त है, बस इससे ज्यादा कुछ भी नही।
मैं क्या कहता, पर मेरे भीतर कुछ टूटा था, मैं रश्मि का झूठ जान चुका था, इस बात को दो हफ्ते भी नही हुए थे, रश्मि की मां हमारे घर आई थीं उसने रश्मि के लिए रिश्ते की बात का खुलासा किया और बताया की आने वाली सुबह रश्मि को लड़के वाले देखने आ रहे हैं, मुझे खटका, हो न हो राहुल के परिवार वाले ही होंगे।
अगली सुबह सब सामान्य था रश्मि हमारे घर आई हुई थी मैं कमरे के भीतर से ही बातें कर रहा था।
मैंने सुना आज तुम्हें देखने लड़के वाले आ रहे हैं, वह चुप थी।
राहुल के मम्मी-डैडी हैं ना, मेरा प्रश्न शायद रश्मि को चुभा और वह बिना कुछ बोले वहां से चली गईं।
दोपहर के करीब 2 बज रहे थे, रश्मि के घर के सामने दो महंगी गाड़ियां खड़ी थी, मैं समझ गया था।
मेरे भीतर उथल-पुथल मची थी, मुझमें ही शायद कोई कमी होगी पर इस बात से मन में खुशी भी थी, चलो किसी को तो उसका प्यार मिला।
घर में शादी की तैयारी जोरसोर से चल रही थी, रश्मि के लिए मेरे मन में कुछ सवाल थे पर मैं रश्मि से पूछने की हिम्मत नही कर पा रहा था, आखिर मुझे वो मौका मिला…
रश्मि छत पे टहते हुए शायद राहुल से मोबाइल पर बातें कर रही थी, मुझे लगा आज मौका है और मैं छत पर जा पहुंचा, रश्मि मुझे देख कर हड़बड़ाई फिर मोबाइल कट कर मुझे टकने लगी।
रश्मि मुझे मेरे एक सवाल का जवाब दोगी, वह मुझसे नजर नही मिला रही थी, मैं पास गया और फिर से वही सवाल दोहराया, वह हां में सर हिलाई, तुम्हें राहुल से प्यार था तो मुझसे कह क्यों नही दिया, रश्मि मुझे डबडबाई आंखों से देखने लगी, बोलो न मैं कोई तुम्हारा दुश्मन था क्या?
नमन मुझे मॉफ कर दो प्लीज, यार ये कोई जवाब हुआ, मैंने उलाहना भरे लहजे में कहा।
पता नही नमन मुझे कब राहुल से प्यार हो गया, अब मैं उसके बिना रह पाने की कल्पना भी नही कर सकती।
रश्मि की हर बात मेरे कलेजे बर तीर से चुभ रहे थे, मैंने जबसे होश संभाला था रश्मि को ही दोस्त, प्यार, पत्नी तक मान बैठा था, पर इसमे रश्मि की क्या गलती थी, मान तो मैं ही बैठा था, हां लेकिन मेरी इन भावनाओं को रश्मि ने कभी अनदेखा भी तो नही किया था शायद मैं इसलिए ही तो 100% था।
नमन तुम भी कोई लड़की पसंद करके शादी कर लो, रश्मि की बात में व्यंग्य था।
हां क्यों नही रश्मि, अब जिसे चाहा था वो ही मुझसे रुठ गई तो…
न जाने क्यों रश्मि मुझसे नजरें बचा रही थी पर मैंने उसकी आंखों में अभी भी अपने लिए जस्बात जिंदा देखे थे।
रास्ता लंबा लग रहा था आज, पता नही क्यों मन उलझा हुआ था, जल्दी पहुंचना भी था और पहुंच कर जो होने वाला था उस पर अनुमानित डर भी।
लंबा जाम था रस्ते पर, मैंने सामने से आते लड़के को पूछा, क्या हो रहा है कोई वीआईपी आ रहा क्या?
नही साहब, बारात आ रही है…फिर धीरे से ढोल की आवाज कानों तक पहुंचने लगी।
आज रश्मि की शादी थी, घर पर रिश्ते नातेदार पहुंचे हुए थे, मेरे घर से भी सभी लोग वहीं पर थे और मैं अकेला घर पर, मुझे समझ नही आ रहा था, आखिर रश्मि ऐसा कैसे कर सकती थी, नही शायद रश्मि मेरा भ्रम है और न जाने क्या क्या बातें मैं सोंच रहा था, बार बार उलझ भी रहा था सुलझ भी रहा था।
और आखिर में मैंने तय किया की रश्मि को भरे मन से नही खुले दिल से विदा करुंगा।
बारात दरवाजे पर थी और सबसे ज्यादा खुश तो शायद मैं ही लग रहा था, नाच रहा था, गा रहा था और कुछ लोग मुझसे सिंपथी जताने की कोशिश भी कर रहें थे जो जानते थे कि मैं रश्मि को प्यार करता हूं।
इसमें रश्मि के मम्मी-पापा पहले नंबर पर थे।
डोन्टवरी मम्मी जी, आप परेशान मत होइए, ये रश्मि का फैसला है और मैं भी चाहता हूं रश्मि जहां भी रहे खुश रहे, अंदर से टूटे हुए दिल को बाहर से डेंटिंग पेंटिंग कार की तरह चमकते चेहरे से ढंकने की कोशिश में मैं कितना सफल हुआ मैं नही जानता पर उस रात मेरी मां बहुत रोई थी।
विदाई की बेला पर मैं भी घरवालों के साथ खड़ा था, उस रात रश्मि मुझसे कुछ कहना चाहती थी, पर न तो वक्त था और न ही दस्तूर, मैं आज तक रश्मि के उन आंखों से उफनते भावों को डिकोड नही कर पाया था, शायद आज हो जाए उससे मिलकर।
चलो…चलो गाड़ी आगे बढ़ाओ…पीछे वाले भाई साब ने मुझे हड़काया और मैंने अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी।
मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था बस कुछेक दस मीनट की दूरी पर ही था मैं रश्मि से…कार की एक्सीलेटर पर पांव का भार बढ़ ही नही पा रहा था, मैं बहुत धीरे गाड़ी ड्राइव कर रहा था।
मैं मंजिल पर था, मेरे हांथ पांव फूल रहे थे, इतने सालों बाद कैसे सामना कर पाउंगा मैं रश्मि का, मन में उथल-पुथल मची थी, मैं कार से बाहर आया सामने बड़ा सा बंगला था, गार्डन में बहुत से फूल खीले थे, सौंधी महक चारो ओर फैल रही थी, दो प्यारे बच्चे फूटबॉल पर भीड़े हुए थे, बेटा सुनो, मेरी आवाज पाते ही दोनों मेरी ओर दौंड़े और पास आकर मायूस हो गए शायद उन्हें किसी का इंतेजार था जिसके आने की आहट में वो दौंड़ आए थे।
तुम्हारा नाम क्या है, मैं नमन और ये मेरी बहन नन्ही, मैं सुनकर आवाक सा रह गया, मुझे समझते देर न लगी, ये दोनों रश्मि के ही बच्चे थे।
रश्मि ने अपने बेटे का नाम मेरे नाम पर रखा था और मैं उससे दूर रहने के लिए ही 8 सालों से मुंबई की भीड़ में खुद को खोज रहा था।
मैं बच्चों से बात ही कर रहा था, तभी मुख्यद्वार से शॉल लपेटे एक महिला आती दिखी, दूर से कुछ साफ नही था पर जैसे जैसे वह मेरे पास आ रही थी, मैं रश्मि को पहचानने लगा, ये वो रश्मि तो नही थी, कितनी बदल गई थी, चेहरे मोहरे से लेकर शरीर की बनावट तक रश्मि में बदलाव साफ झलक रहा था।
आंखों के नीचे झुर्री, बुझी हुई रश्मि को देखकर मेरा मन व्याकुल हो उठा था।
नमन, तुम नमन हो ना, हां रश्मि मैं नमन ही हूं, रश्मि के चेहरे पर कुछ खास बदलाव नही आया मुझे देख कर पर उसका बेटा जरूर सवाल करने लगा।
अंकल आपका नाम भी नमन है, और वह मुझे एकटक निहारने लगा।
हां बेटा मैं भी नमन हूं, कहते हुए मैंने नमन को गोद में उठा लिया, नन्ही मां से लिपट कर मुझे निहारने लगी।
रॉयल पैलेस जैसे घर के हॉल में बैठा मैं राहुल के बारे में सोंच रहा था, मैं रश्मि से पुछने ही वाला था तभी मेरी नज़र एक तस्वीर पर पड़ी, मेरी आंखे खुली की खुली रह गई, आवाज तो जैसे मेरे हलक में ही मर गई थी।
एक नौकर चाय लेकर मेरे सामने खड़ा था और मेरी नजर उस तस्वीर पे अटकी हुई थी।
हमारे साहब जी की तस्वीर है, कहते हुए नौकर ने मेरा ध्यान तोड़ा, मैंने चाय की प्याली उठाते हुए नौकर से पूछा, ये कब हुआ?
क्या बताएं साहब इस हंसते खेलते परिवार को न जाने किसकी नजर लग गई, राहुल साहब, बड़े साहब और मां जी एक कार दुर्घटना में मारे गए और मैडम अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ अकेली हो गई इस महल जैसे घर में, अब तो यहां कोई आता जाता भी नही।
नौकर जाने लगा तभी वहां रश्मि पहुंची, शायद वह समझ चुकी थी की मैं उससे क्या पूछने वाला हूं।
कैसे हो नमन, बड़े दिनों बाद हमारी याद आई तुम्हें, मैं रश्मि को एकटक निहारे जा रहा था।
मेरी हिम्मत ही नही हुई रश्मि से कुछ पूछने की, बच्चों को देखकर मेरी आंखे भर आई, आखिर क्यों ऐसा होता है, क्यों जिंदगीयों को वक्त डंस लेता है, क्या गुनाह था इन बच्चों का, रस्ते भर जो मैं सोंचते आ रहा था वह सोंच एकदम से बदल चुका था।
कहानी: गजेंद्ररथ गर्व 9827909433
