वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पौराणिक कथाएं! क्या हमारी पौराणिक आस्था हमारे अंधविश्वास की जड़ है?

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वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पौराणिक कथाएं!
क्या हमारी पौराणिक आस्था हमारे अंधविश्वास की जड़ है?

आज कल सोशल मीडिया में एक फ़िल्म के दृश्यों को खूब शेयर किया जा रहा है, फ़िल्म मुझे यूट्यूब पर मिल गई नाम था “भगवान भरोसे”

यह कहानी 1989 की पृष्ठ भूमि पर फिल्मायी गई है, दो ग्रामीण लड़के स्कूल से पहले एक पण्डित जी के पास पढ़ने जाते हैं जहां उन्हें पढ़ाई के नाम पर पौराणिक कहानियां सुनाई जाती है!
बताया जाता है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिका है और ब्रह्मा, विष्णु, महेश इस धरती को संचालित कर रहे हैं!
मैं भी 1989 को लगभग 7-8 साल का, ठीक इस फ़िल्म के किरदार वाले बच्चों सी उम्र रही होगी!
यकीनन तब हमें भी यही विश्वास था कि भगवान शेषनाग के फन पर ही दुनिया टिकी है और विष्णु जी के अवतारों ने पाप का नाश किया है, महादेव हमारे इष्ट रहें, यथा शक्ति मैं और मेरा बचपन का दोस्त पूरन तालाब पार के शिवालयों में जलाभिषेक किया करते, कभी नई चप्पल तो कभी चने के पैसे के लिए मनौतियां मानते, पैसे पिताजी से मिल जाते, हमारी खुशी का ठिकाना न होता, महादेव को 2 लोटा अलग से शाम को चढ़ा आते!
नई चप्पल जिस दिन पा गए हमारी तो ईश्वर के प्रति आस्था चरम पर!
एक दिन मंदिर की सीढ़ियों से ही चप्पल चोरी हो चली तो इसकी शिकायत भी मंदिर के भीतर बैठे महादेव से ही करने और चप्पलें वापस पाने कई बाल्टी जल शिव को चढ़ा आए लेकिन चप्पल नही मिली तो भगवान से नाराज भी हुए!

इस तरह बाल मन और पौराणिक कहानियों का दृश्यम हमारे और हम जैसे बच्चों की दिनचर्या रही!
हर साल रामलीला में हमारी टोली अलग से मंचन करती, मैं खुद राम बनता और अन्य किरदार अपने सहपाठियों में बांट कर पूरा रामायण खेल लेते थे।
बाल मन पर कहानियों का खूब प्रभाव रहता है, जो बातें, परी कथाएं नानी सुनाती वह आज भी मन के किसी कोने में धुंधली सी जिंदा है।
मैंने तो अपनी पहली फ़िल्म बैर की पटकथा भी नानी की कहानी से ही बनाई थी।
साल 2006 में जब फ़िल्म बैर पर काम शुरू हुआ, उसका प्लॉट ही राऊत और रउतइन की कहानी पर आधारित था।

भगवान भरोसे फ़िल्म 1989 के करीब उत्तर प्रदेश के किसी गांव की कहानी बताई गई है और इसे अटपटे तरीके से हिन्दू-मुश्लिम दंगों से जोड़ दिया गया है, यह बताने की कोशिश की गई है कि बच्चों को धर्म और पौराणिक कहानियों की शिक्षा ने ही हमारी पीढ़ियों से वैज्ञानिक सोंच छीन ली है!

फ़िल्म के एक दृश्य में जब स्कूल में चंद्र ग्रहण पर सवाल किया जाता है तब बालक पौराणिक कथाओं का हवाला देकर सागर मंथन की कहानी से राहु केतु को जोड़कर उत्तर देता है जिसके लिए गुरुजी उसे डांट देते हैं और बालक नाराज होकर घर में अपनी मां से शिकायत करता है और शिक्षकों को भोंगा बता देता है!
आज परिस्थियां बदली हुई है, अब के बच्चे डिजिटल युग की पैदाइश हैं जिन्हें सुनकर लगता है हम ही अपने समय में अंधविश्वासी रहें शायद?

आज से 9 महीने पहले अंतरिक्ष के सफर पर गई सुनीता विलियम्स और उनके साथी धरती पर वापस लौट रहे हैं वे 5 जून 2024 को अंतरिक्ष स्टेशन गए थे और मार्च 2025 के अंतिम दिनों तक लौटेंगे!
वहीं दूसरी ओर भारत में पौराणिक कथावाचकों की संख्या और उनके कथा करने के तिथियों सहित उन कथाओं में शामिल भारतीयों के आंकड़े हैरान करने वाले हैं?!

अब अचरज करिए विज्ञान कहाँ पहुंच गया और आम लोगों के साथ खुद भारतीय राजनेता अभी भी नीबू मिर्ची के टोटके पर अटके हुए हैं?

गजेंद्ररथ गर्व, संपादक प्रदेशवाद

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