आईसीएआर-एनआईबीएसएम: उन्नत कृषि अनुसंधान और नैनोकण संश्लेषण पर व्यावहारिक प्रशिक्षण…पढ़ें पूरी खबर!

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शीतकालीन विद्यालय के प्रतिभागियों को उन्नत कृषि अनुसंधान और नैनोकण संश्लेषण पर व्यावहारिक प्रशिक्षण

विभिन्न राज्यों से आए आईसीएआर-एनआईबीएसएम के विंटर स्कूल कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने वीएनआर सीड्स, रायपुर में अनुसंधान और विकास, उपकरण, उत्पाद प्रसंस्करण, भंडारण और गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला जैसी विभिन्न सुविधाओं का दौरा किया।
प्रतिभागियों ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (आईजीकेवी) का भी दौरा किया, और इसकी अत्याधुनिक अनुसंधान और नवाचार सुविधाओं को करीब से देखा व अध्ययन किया । प्रशिक्षुओं ने डॉ. आर.एच. रिछारिया सेंट्रल इंस्ट्रूमेंटेशन सुविधा, जिसमें आणविक जीव विज्ञान, ऊतक संवर्धन, डीएनए परीक्षण और जर्मप्लाज्म भंडारण से संबंधित उन्नत उपकरण शामिल हैं के बारे में विस्तृत जानकारी ली व कार्य कर रहे वैज्ञानिकों से चर्चा की ।

इस दौरे का मुख्य आकर्षण मशरूम उत्पादन इकाई थी, जहाँ तकनीकी टीम ने खेती के तरीकों, पैकेजिंग, प्रसंस्करण और नवीन तकनीकों के अनुप्रयोग के बारे में जानकारी दी। इसके अतिरिक्त, प्रतिभागियों ने जैव प्रौद्योगिकी ऊष्मायन केंद्र का दौरा किया, जो कृषि उत्पादों के व्यावसायीकरण में स्टार्टअप कंपनियों का समर्थन कर रहा है ।
प्रशिक्षु प्रतिभागियों ने नैनोकण संश्लेषण पर गहन व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्र के लिए एमिटी विश्वविद्यालय, रायपुर का भी दौरा किया। इस यात्रा का उद्देश्य अत्याधुनिक नैनो तकनीक और कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी में उनके अनुप्रयोगों के बारे में व्यावहारिक जानकारी एकत्र करना था। मुख्य आकर्षण ग्रीन टी एक्सट्रैक्ट और सिल्वर नाइट्रेट का उपयोग करके सिल्वर नैनोकणों का हरित संश्लेषण था, जिससे प्रतिभागियों को पर्यावरण के अनुकूल नैनोमटेरियल उत्पादन का निरीक्षण और प्रयोग करने का अवसर मिला।

संस्थान के संयुक्त निदेशक और विंटर स्कूल के पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. पंकज शर्मा ने बताया कि नैनो-प्रौद्योगिकी का उपयोग करके एकीकृत रोग प्रबंधन में रुझान: चुनौतियाँ और आगे का रास्ता विषय पर 21 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आईसीएआर (22 जनवरी-11 फरवरी 2025) द्वारा प्रायोजित है और इसमें 23 प्रशिक्षु भाग ले रहे हैं। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. के.सी. शर्मा और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मल्लिकार्जुन जे. सत्र के दौरान प्रशिक्षु संकाय सदस्यों के साथ थे, जिससे सार्थक चर्चा और ज्ञान का आदान-प्रदान सुनिश्चित हुआ।

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