झारखंड के चुनाव परिणाम आ चुके हैं और जिस तरह से झारखंड प्रजातांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा ने एक सीट जीतकर स्थानीयता और क्षेत्रवाद का बिल्कुल फूंक दिया है उसे देखकर छत्तीसगढ़ में भी हल चलें तेज है झारखंड के टाइगर कहे जाने वाले जयराम महतो ने डुमरी सीट से फतह हासिल कर ली है और झारखंडी खतियान लागू करने के अपने उद्देश्य पर एक कदम आगे बढ़ चुके हैं।
जिस तरह से जयराम कुमार महतो ने क्षेत्रीयता का बिगुल फूंक कर झारखंड में झारखंडी प्रथम का नारा देते हुए खतियान लागू करने की बात कही थी यह बड़ा कारण था की युवा उनसे जुड़े छत्तीसगढ़ में भी इसी तर्ज पर राजनीतिक पार्टियां बनी लेकिन सफल नहीं हो पाई!
शायद छत्तीसगढ़ की पार्टियों ने असल मुद्दों को अनदेखा कर दिया था, गाहे बगाहे छत्तीसगढ़ में भी मिसल 1952 की चर्चाएं होती है लेकिन इसे लागू करने को लेकर किसी पार्टी ने अब तक कोई शुरुआत नहीं की है अब देखना होगा की क्या झारखंड से छत्तीसगढ़ की पार्टियों को सीख मिलती है और वह छत्तीसगढ़िया प्रथम के अपने नारे के साथ मिसल लागू करने की बात पर ठहरते हैं या नहीं!
यह देखने वाली बात होगी क्योंकि छत्तीसगढ़ और झारखंड एक साथ ही अस्तित्व में आए थे ऐसे में दोनों ही राज्यों में अपने स्थानीय वर्चस्व, भाषाई और सांस्कृतिक लड़ाई जारी है। इतवार जोहर में गजेंद्र रथ गर्व का यह विश्लेषण क्या कहता है जरूर सुनें…