सरलग 3 दिन जलने वाला दीया…कोन बनाए हे? कहां मिलही?

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दिवाली में हर घर के सामने लोग दीया जलाते है और उस दिए में कुछ देर बाद फिर से तेल डालना पड़ता हैं। अब बार-बार दीया में तेल डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

क्योंकि छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला में आने वाला ग्राम पंचायत कुम्हार पारा में जादुई दिया के नाम से प्रसिद्ध कुम्हार अशोक चक्रधारी ने जादुई दिया का निर्माण किया है। अशोक चक्रधारी ने बताया कि उन्होंने पहले 24 घंटे जलने वाला दीया बनाया था, लेकिन अब 72 घंटे तक दिया जलते वाला दीया बनाया है।

शिल्पकार अशोक चक्रधारी के बनाए मिट्टी के दीये देख हर कोई मुरीद हो रहा है। पिछले 5 सालों से अशोक चक्रधारी मिट्टी के जादुई दिए निर्माण करते आ रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होंने हाथी की मूर्ति के ऊपर जादुई दिए को लगाकर बाजार में उतारा है, जो लोगों के बीच काफी सुर्खियां बटेर रही है।
हाथी की मूर्तियों के साथ जादुई दिए को 5 हजार रुपए कीमत में बेच रहे हैं। अभी तक हैदराबाद में 100 और बेंगलुरु के क्राफ्ट शोरूम के लिए 200 दिये भेज चुके हैं।

नए उत्पाद की मांग स्थानीय सहित देश के महानगरों तक है। वहीं सामान्य जादुई दिया 300 रुपये की कीमत में बिक रहा है। उन्होंने पूरे सालभर में 2 हजार नग जादुई दिया बिकने की बात कही है।

वहीं, अशोक कहते हैं कि मिट्टी का सामान होने के कारण पैकिंग की लागत बढ़ रही है और ट्रांसपोर्टिंग में दिक्कत की वजह से देश के अन्य नगरों में दिये भेजने में दिक्कत आ रही है। उन्होंने कहा कि ट्रेन की सुविधा रहती तो बाहर भेजने में आसानी होता।

इस दिए के बाती वाले पात्र में तेल कम होते ही ऊपर मिट्टी के छोटे से मटके के आकार के रखे पात्र में भरा तेल खुद-ब-खुद बाती वाले पात्र में आता जाता है। इस तरह यह दीया घंटों जलता रहता है। अशोक पुस्तैनी तौर पर कुम्हार के पेशे से जुड़े हुए हैं। उनका परिवार मिट्टी के घड़े बनाने का कार्य करता था। स्कूल की पढ़ाई के बाद अशोक ने भी पिता के काम में हाथ बंटाना शुरू किया।

इसी बीच नई दिल्ली की कपाट संस्था ने कुम्हारपारा कोंडागांव में मूर्तिकला का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद अशोक ने भद्रावती महाराष्ट्र में जाकर एक साल तक मूर्तिकला का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद इस कला की बारीकियां समझ में आईं और उनके काम में दिनों दिन निखार आता गया। आज डिनर सेट, डेकोरेट के सामानों के साथ दीवाली से पहले हर साल जादुई दीये का निर्माण कर रहे हैं।

बाजार की मांग के अनुरूप दीए में बदलाव करते हुए इस बार 4 हाथी के ऊपर दिए को लगाकर संयुक्त रूप से जादुई दिए को बाजार में उतारा है। अशोक बताते हैं कि मांग इतनी है कि वे आपूर्ति नहीं कर पा रहे। बनाने में काफी समय भी लग रहा है।

अशोक ने बस्तर के पारंपरिक शिल्प झिटकू-मिटकी के नाम से कर्मशाला स्थापित किया है। उन्हें केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय ने मिट्टी कला पर मेरिट प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया था। इसके साथ ही उन्हें कई बार सम्मानिक किया जा चुका है। अशोक अपनी कर्मशाला में मिट्टी की मूर्तियां, दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी बनाते है।

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