राज्य की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने नवजात बच्ची के सिर से 12 घंटे के भीतर माँ का साया छीन लिया।
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ने फिर एक जिंदगी निगल ली!
24 साल की साक्षी डिलीवरी के लिए बिरगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती की गई थी, बच्ची के जन्म के बाद सब ख़ुश थे, 6- 7 घंटे बीत चुके थे, रात को साक्षी की तबीयत बिगडी लेकिन सरकारी अस्पताल में कोई डॉक्टर ड्यूटी पर नहीं थे ।
3 डिलीवरी 3 नसबंदी के केस होने के बाद भी कोई महिला डॉक्टर मौजूद नहीं थी अस्पताल में, एक पुरुष स्टाफ नर्स था जो दरवाजा बंद करके सो रहा था, बार बार उठाने के बाद कुछ मिनट के लिए आता, परिजनों को धमकाता, अंत में बेसुध साक्षी को पानी पिलाया गया, एक इंजेक्शन लगाई गई जिसके दस मिनट के बाद साक्षी ने दम तोड़ दिया।
पानी शायद स्वांस नली में फँस गया, मौत के बाद भी स्टाफ नर्स साक्षी और परिजनों को अपमानित करता रहा, कहता रहा नौटंकी कर रही है!
मुँह में पानी तक मारा उसने।
बताया जा रहा है डॉक्टर उपाध्याय की नाईट ड्यूटी लगाई गई है वो ख़ुद चल फिर नहीं पाते, शारीरिक रूप से बीमार मानसिक रूप से परेशान हैं!
रायपुर के सरकारी अस्पतालों में लापरवाही से यह पहली मौत नहीं है । इतनी मौतों का बोझ होने के बाद भी अधिकारी कार्रवाई में लीपापोती कर देते हैं।
बिरगांव में ही दो महीने पहले नसबंदी के बाद औरत की मौत, डिलीवरी के बाद परिजनों से वसूली जैसी शिकायत आम है, लेकिन इस बार की घटना ने एक परिवार की खुशियां और एक बेटी से उसकी माँ छीन ली है।
आखिर जिम्मेदारों को होश कब आएगा?
इतने जनप्रतिनिधि, गली गली नेता, विधायक, सांसद उसके बाद भी व्यवस्था नहीं सुधार रही तो अब सरकारी अस्पताल जाकर मरने की गारंटी क्यों ले जनता?