बिहार के प्रशांत किशोर बनाम छत्तीसगढ़ के अमित बघेल! पढ़ें विश्लेषण…

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बिहार में प्रशांत किशोर की जनसुराज ने बड़ा महायज्ञ किया है तीन साल और अब उस मंथन, महायात्रा का परिणाम आना है, कितना सफल होंगे मुझे नही पता लेकिन ठीक कुछ इसी तरह का प्रयास छत्तीसगढ़ में अमित बघेल ने किया है, मैं इस क्रम में उनका साथी रहा हूं!
दस साल का कठिन परिश्रम और एक राजनीतिक दल जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी, IBC24 में सीनियर बुलेटिन प्रोड्यूसर की जिम्मेदारी के साथ ही मैं लगभग 2015 में छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना कि मुहिम से जुड़ा और सक्रिय रूप से 2016-17 के आस पास अपने क्षेत्र खरोरा का पहला संयोजक होकर संगठन की मजबूती के लिए काम करना शुरू किया ठीक इससे पहले लगभग 2014 से मैं अपने फेसबुक पेज पर इतवार जोहार LIVE के माध्यम से सोशल मीडिया के साथियों से जुड़ कर प्रदेशवाद की बातें कर ही रहा था और इससे पहले मैं लगभग 3 छत्तीसगढ़ी फ़िल्म लिख चुका था जो पर्दे पर आ चुकी थी बतौर फ़िल्म लेखक, निर्माता मेरी पहचान बन चुकी थी, इस पर हमर बानी हमर गोठ जैसे छत्तीसगढ़ी समाचार बुलेटिन ने मुझे और परिचित कर दिया था, नवाचार करते, पुरखा के सुरता, मोर माटी के नाचा जैसे टीवी शोज़ ने मुझे तब खूब प्रसिद्धि दी, मैंने एक वाइस ओवर आर्टिस्ट के रूप में अपनी आवाज की अलग पहचान बनाई लोगों ने पसंद किया, सराहा और इस तरह 2021 में मुझे CKS रायपुर ग्रामीण की कमान मिली।
एक लंबा सफ़र एक गैर राजनीतिक संगठन का रहा और तभी 2023 के चुनाव से ठीक 14 दिन पहले हमारी राजनीतिक विंग JCP का उदय हुआ, चुनावी चक्रम का पहला अनुभव भी इसी साल हुआ, हमारे सभी उम्मीदवारों की जमानत जप्त हुई जिसका अंदाज हम सभी संस्थापक सदस्यों को था, 14 दिन की तैयारी से हम जंग कैसे जीतते, बस बताना था कि हम मैदान में आ चुके हैं और यह बताने में हम सफल हुए!
आज मैं राजनीतिक दल JCP से भले ही अलग हो चुका हूं लेकिन यह पार्टी छत्तीसगढ़ियों के लिए, स्थानीयता के लिए और प्रदेशवाद के लिए एक मजबूत स्तंभ बन रहा है, लगातार यह गरीब शोषितों के हक में लड़ रहा है, मातृ संगठन CKS कंधे से कंधा मिलाए छत्तीसगढ़िया वाद की अलख जगा रहा है ठीक यही काम बिहार में एक व्यक्ति जिसे नेतृत्व निर्माण की जमीन कहा जाता है, प्रशांत किशोर ने 3 साल किया, उसके पास संसाधन रहे और हमने यही काम बिना संसाधन के लंबे अरसे किया।
बिहार और छत्तीसगढ़ की पृष्ठभूमि कई मामलों में एक जैसी है, बस हमारे लोगों में उग्रता और दमन करने जैसे विशेष राजनीतिक गुण नही हैं?
आज आम चुनाव का माहौल झेल रहा बिहार जनसुराज को कितना समझ पाता है यही देखना है क्योंकि लेनदेन वाली जनता के लिए प्रजातंन्त्र कोई चिड़िया नही लगती!
मुझे याद आता है, जब चुनावी दौर में लोगों से कुछ व्यवस्था मांगी जाती थी तब हमारे पास सिर्फ शब्द होते थे और उनके शब्द, फोकट में वोट मिलही? सुनकर हम आगे बढ़ जाते थे!
छत्तीसगढ़ की राजनीति में पैसों का बड़ा मोल है और यही हाल लगभग हर गरीब राज्य का है?
5 साल कोई आता नही तो चुनाव में जो आ गए उन्ही से लेलो, जीतकर कौन वापस जनता की चौखट खूंदेगा?
हर राज्य में उनकी अपनी प्रादेशिक पार्टी का राज स्थापित होना चाहिए मैं इसका पक्षधर हूं और मुझे उम्मीद है आगली बार आम छत्तीसगढ़िया इस बात से वास्ता जरूर रखेगा?
Gajendra Rath Verma ‘GRV’

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