#पिछलग्गू नेताओं ने बंटाधार किया…छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान का?
“छत्तीसगढ़ में सब कुछ है, बस एक कमी स्वाभिमान की” इन वाक्यों को किन परिस्थितियों में संत कवि पवन दीवान ने कहा होगा!
निश्चित ही यह प्रदेश शिक्षा, साहित्य और संभावनाओं की धरती रही है पर क्या इन सब के बीच हमें हमारे ऐतिहासिक गौरव पर कभी गुमान हुआ?
शायद नही, क्योंकि हमें हमारे दिखे नही और हमने गैरों पर खूब भरोसा किया, धोखा खाया और यही परंपरा बनती चली गई!
भगवान राम का यह ननिहाल अपने जंगलों के लिए जाना जाता रहा पर आने वाले 5 से 10 सालों में यह कौशल प्रदेश अपनी छाती में कुकुरमुत्ते जैसी उगने वाली औद्योगिक इकाइयों के लिए चर्चित होगा?!
अंधाधुंध जंगलों की कटाई किसके लिए? आम छत्तीसगढ़ियों के लिए या देश के पूंजीपतियों के लिए?!
संगठित अपराध का गढ़ बन गया मेरा प्यारा 36गढ़ !
हमारी क्या गलती की हमारी महतारी के गर्भ में अनगिनत महंगे खनिज है, इसका दोहन करने वाला कौन? है हममें से कोई?
जंगल कट रहे, हमें क्या, हमारी मातृभाषा दबाई जा रही, हमें क्या, इस प्रदेश की सत्ता का संचालन बाहरी लोग कर रहें, हमें क्या, यहां की जल जंगल जमीन पर राजनीतिक लूट मची है, हमें क्या?
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Gajendra Rath Verma ‘GRV’