प्रदेश में मजबूत होती स्थानीयता और CKS
छत्तीसगढ़ शांत और खनिज संसाधनों से परिपूर्ण प्रदेश है, अपने निर्माण के 25 वर्षों में आज यहां की प्रादेशिकता पहली बार उच्च दिख रही है और इसका बड़ा कारण है छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना!
लंबे समय से यह प्रदेश अपने अस्तित्व और स्थानीयता को लेकर शून्य रही या कहें इस बात से कभी आम छत्तीसगढ़िया अक्रोशित नही हुआ की उन्हें अपमानित किया जा रहा है, वह हमेशा एक शांत और खुद में डूबा हुआ अनमना, अपनी प्रकृति और उत्सवों में रमा रहा।
आज प्रदेश निर्माण की रजत वर्ष पूरी होने वाली है और अब आम छत्तीसगढ़िया इस बात से नाराज होने लगा है की उन्हें सबसे बढ़िया कहने के पीछे उनका उपहास है?
किसी भी प्रदेश की स्थानीयता, उनके तीज त्यौहार परम्पराओं में निहित है और लगातार यह प्रदेश अन्य प्रदेश की रीतियों, विचारों और लोगों के बोझ से दबी ही रही?
आज जब भिलाई हरेली रैली की बात होती है, आज जब मंचों पर छत्तीसगढ़ी भाषा और सम्मान की बात होती है इस प्रदेश की प्रादेशिकता का मान उच्च होता है!
किसी मंच से जब यहां की राजभाषा को निम्न होने जैसे अपवादों पर चर्चा हुई तो आम छत्तीसगढ़िया इस बात से गुस्साया, सवाल पूछा और लड़ाई लड़ने आमादा हुआ!
अब इस प्रदेश में प्रादेशिकता सांस लेने लगी है यह बताने भी लगी है की आप कोई भी हों हमारी भाषा संस्कृति और अस्मिता से खिलवाड़ की छूट आपको नही है!
एक प्रसिद्ध TV चैनल के मंच से सोशल मीडिया इनफ्लूइंसर ने यह बताने की कोशिश की “छत्तीसगढ़ में यहां की मातृभाषा लोवर कास्ट लैंग्वेज मानी जाती थी?” क्या ऐसा है?
दरअसल यह सोंच उस समाज का प्रतिनिधित्व था जिन्हें इस प्रदेश की भाषा आती नही, तो क्या आपको यहां की भाषा नही आना इस भाषा की कमजोरी है या आपकी? आपने इस प्रदेश में आश्रय लिया और अपनी कमजोरी छुपाने इस प्रदेश की राजभाषा को ही कमजोर बता दिया?
हमारी गलती बस इतनी सी है की हमारे लोग गैर भाषियों के सुलभ संचार के लिए उनके समझ आने वाली भाषा में व्यवहार करते हैं और शायद यहीं से इस सोंच ने जन्म लिया होगा की ये खुद अपनी भाषा को निम्न मानते हैं पर ऐसा नहीं है किसी भी भाषा की प्रकृति हमेशा उच्च ही रही है।
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के सेनानियों ने इसका जवाब मांगा है और यह बड़ी मिशाल है अब इस प्रदेश की भाषा को आपके या किसी भी मंच से लोवर कास्ट की भाषा नही कही जाए, अभी यह निवेदन है!
तमाम बुद्धिजीवी इस बात से ताल्लुक रखते है की छत्तीसगढ़ी से इतर हिंदी हमारी राष्ट्रीयता का पर्याय है ऐसे में छत्तीसगढ़ी इस प्रदेश की प्रादेशिकता का पर्याय है इसमें कोई दो राय नहीं और इस देश में हर प्रदेश के लिए यह बात लागू होती है।
गजेंद्ररथ गर्व