नगर पंचायत खरोरा में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर एक हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है!
नगर खरोरा के गौटिया अरविंद देवांगन जिन्हें अब तक अध्यक्ष प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा था उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है, इससे पहले अरविंद देवांगन ने पत्नी निशा देवांगन के लिए टिकट की दावेदारी की थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी में उन्हें शायद यह कहकर टिकट नहीं दिया कि वे कुछ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए थे और इस तरह से उनकी दावेदारी खत्म कर दी गई लेकिन फिर भी उन्होंने निर्दलीय लड़ने का फैसला किया और अपने समर्थकों के साथ नामांकन फार्म भी खरीद लिया था।
बतादें की, नगर खरोरा में बीजेपी ने अनिल सोनी की पत्नी सुनीता सोनी को अपना उम्मीदवार बनाया है।
अनिल सोनी जारी अंतिम वर्ष तक नगर पंचायत खरोरा के अध्यक्ष रहे हैं और अब फिर से उनकी पत्नी को मौका दिया गया है जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी खरोरा में भारी कोलाहल मचा हुआ है, ऐसी खबरे हैं! असंतुष्टों की भावनाएं भीतर ही भीतर उबल रही है ऐसी चर्चा है!
पार्षद टिकट को लेकर भी पार्टी में अंतर्द्वंद मचा हुआ है 26 जनवरी की संध्या एक पूरक सूची निकालकर बीजेपी ने दो पार्षदों के नाम बदल दिए हैं इससे भी पार्टी कार्यकर्ताओं में नाखुशी है!
ऐसा सूत्रों से पता चला है की नगर पंचायत खरोरा से इस बार महिला प्रत्याशी के रूप में रश्मि वर्मा, गुरजीत कौर भाटिया और कांति सेन प्रबल दावेदार थे उनके नाम की चर्चा भी हुई थी और इन्हें लिस्टिंग भी किया गया था लेकिन आखिर में जब सूची जारी हुई तो वह चौंकाने वाली थी और अब इसके बाद से खरोरा मंडल में असंतुष्टों की संख्या बढ़ गई है!
वहीं दूसरी ओर निशा अरविंद देवांगन की दावेदारी के बाद पुरानी बस्ती खरोरा में खुशी की लहर थी वह अब बुझ गई है!
बताया जा रहा है की, पुरानी बस्ती खरोरा के बुजुर्गों ने अरविंद देवांगन से चर्चा कर उन्हें यह चुनाव लड़ने के लिए मनाया था और वह तैयार भी हो गए थे लेकिन बीजेपी के बड़े नेताओं के आग्रह पर उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है, इसके बाद सड़क इस पार की राजनीति खत्म होती दिख रही है वहीं सड़क उस पार अध्यक्ष के तीन प्रत्याशी मैदान में है ऐसे में अब पूरा दारोमदार पुरानी बस्ती खरोरा के लोगों पर टिका हुआ है!
राजनीतिक पंडितों का मानना है की जो उम्मीदवार पुरानी बस्ती खरोरा के पांच वार्डो को साध लेगा उनकी जीत निश्चित है!
क्योंकि इससे पहले इन पर अरविंद देवांगन का वर्चस्व रहा है ऐसे में अब उनके चुनाव नहीं लड़ने पर तीनों में से किस उम्मीदवार को पुरानी बस्ती खरोरा का समर्थन मिलता है यह प्रत्याशियों के मेहनत, काम के तरीके, जनता का विश्वास और प्रत्याशी के व्यवहार पर टिका है।
अब देखना होगा बीजेपी कांग्रेस और एक निर्दलीय उम्मीदवार में से कौन पुरानी बस्ती खरोरा को साध पाता है?