छत्तीसगढ़ सरकार की संवाद शाखा प्रदेश के आमजन के साथ सरकार को जोड़ने की एक कड़ी है इस कड़ी में प्रदेश के पत्रकारों की खास भूमिका है जो सरकार की बातों, योजनाओं और कार्यक्रमों का पूरा ब्योरा आम जनता तक पहुंचाते हैं और शायद इसीलिए यह विभाग संवाद कहलाता है!
बीते दिनों छत्तीसगढ़ संवाद में एक अधिकारी के केबिन में जिस तरह की घटना हुई वह संवाद की कार्यशैली पर सवाल उठाते हैं और साथ ही इस प्रदेश में परभाषियो, परप्रांतियो के बढ़ते वर्चस्व का भी सबूत देती है?

छत्तीसगढ़ अपने रजत जयंती वर्ष के मुहाने पर खड़ा है लेकिन आप नजर डालिए, सरकार के मंत्रालयों में, कार्यालयों में जनसंपर्क जैसी संस्था की ओर तब आप समझ जायेंगे की इन 25 सालों में भी छत्तीसगढ़ के ये कार्यालय छत्तीसगढ़िया जनमानस के अनुकूल नहीं हो पाई है?
आप अंदाजा यहीं से लगा सकते हैं की प्रदेश के मुख्यमंत्री का मीडिया सलाहकार बिहार मूल का एक पत्रकार है?
आए दिन आयोजित कवि सम्मेलन और संस्कृति आयोजनों में आप अक्सर परप्रांतीय कलाकारों कवियों और साहित्यकारों को देखते हैं जो मोटी रकम के साथ वापस लौटते हैं पर मजाल इन प्रदेश से कोई आम छत्तीसगढ़िया इन अपव्ययों पर आवाज उठा दे!
सरकार के विभागों में यहां तक के मंत्रालयों, सचिवालयों में आम छत्तीसगढ़िया गेट पर या चाय पानी पिलाने वाला ही मिलेगा?
अपनी ही जमीन पर खुद को बेकार बेजार मान बैठे आम छत्तीसगढ़िया कलाकार, साहित्यकार, कवि आखिर क्यों चुप रहता है, क्या कोई डर है?
नही, बस स्वाभिमान की कमी है, मुझे क्या की बेपरवाही है?
और इसी बेपरवाही ने संवाद को परभाषियों, परप्रांतियों के लिए कमाई का अड्डा बना दिया है!
500 करोड़ का बजट है संवाद, जनसंपर्क जैसी संस्था का जिसे सीधे मुख्यमंत्री हैंडल करते हैं, आप पता करिए इन 5 सौ करोड़ में कितना आम छत्तीसगढ़िया पत्रकार, संस्था अथवा छत्तीसगढ़ी भाषी कार्यक्रमों में खर्च होते हैं?
लंबे समय से जमे अधिकारी कर्मचारियों की जनसंपर्क और संवाद जैसी संस्थाओं में मोनोपली है उनके खास या उन्हें मोटी रकम कमीशन देने वालों को वहां VIP ट्रीटमेंट दिया जाता है, बाकायदा उनके व्यक्तिगत आयोजनों के लिए भी सरकारी फंड खोले जाते हैं!
एक निजी समाचार पत्र को छत्तीसगढ़ से शुरू करने के लिए सरकारी संस्था संवाद, जनसंपर्क ने करोड़ों रुपए विज्ञापन के नाम पर दिए और लगातार कई समाचार पत्र और चैनल सरकार का मुखपत्र बने हुए हैं, ऐसा नहीं है की बीजेपी के सरकार में ही ऐसा हो रहा है बल्कि इससे पहले कांग्रेस सरकार ने भी हद पार किया है।
भूपेश सरकार में तो कांग्रेस के खास कार्यकर्ताओं के लिए उनके पोर्टल और चैनलों के लिए खजाना खोल दिया गया था, वे घर बैठे हर महीने लाखों छाप रहे थे, जिसका खुलासा RTI से छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ के अनुराग शर्मा ने किया भी और साथ ही बीजेपी सरकार में उसी परंपरा का निर्वहन करते बांटे गए करोड़ों की रबड़ी की सफेदी भी दिखाई थी!
अफसोस!! यह छत्तीसगढ़ है यहां पत्रकार का मतलब एक वर्ग विशेष ही होता है, नई पीढ़ी को संवाद और जनसंपर्क से मिलने वाली विज्ञापन का न तो ज्ञान है और न लोग कोशिश करते हैं?
सैकड़ों युवा आज पत्रकारिता करके अपना यूट्यूब चैनल और पोर्टल संचालित कर रहे हैं, कई तो पत्रिका और मासिक मैगजीन निकाल रहे हैं लेकिन उन्हें सरकार से कोई दरकार नहीं?
क्योंकि संवाद और जनसंपर्क जैसी जगहों पर ज्यादातर मध्यप्रदेश के समय से भोपाली और बिहारी, उत्तरप्रदेश के तथाकथित पत्रकार और मीडिया मैनेजरों की तूती बोलती है?
आम छत्तीसगढ़िया पत्रकार या समाचार संचालक संस्थाओं को वहां घुसने ही नही दिया जाता, कोई पहुंच भी गया तो दस बीस हजार रुपए मासिक विज्ञापन शुरू कर दी जाती है जिसे आगे कुछ महीनों बाद कई कारण बता कर बंद भी कर दिया जाता है?
इस प्रदेश में मीडिया और जनसंपर्क, संवाद की दलाली करके हजारों तथाकथित पत्रकार, लाइजनर बड़े समाचार चैनलों में संपादक बने बैठे हैं, सरकार में भी उनकी पैठ है, इस प्रदेश के विधायक सांसद उन्हें बहुत बड़ा बुद्धिजीवी मान कर उनके सम्मान में हाथ जोड़ रहे हैं और जिस जनता ने उन्हें ये हैसियत दी है उनके हितों से समझौता कर रहे हैं!
आप ध्यान लगाकर छत्तीसगढ़ की मीडिया और उनमें कार्यरत लोगों की खबर लेंगे तो जानेंगे ये लोग बाहर प्रदेशों से आकर यहां अपनी दुकान चला रहे हैं?
खाली हाथ कमाने खाने आए तथाकथित पत्रकारों ने संगठन बना कर अपने हितों के लिए सरकारों का उपयोग किया, जमीनें, स्वास्थ्य सेवाएं हड़पे और आज आम छत्तीसगढ़ियों का हक मारके उनके हित चिंतक बने बैठे हैं।
राजधानी रायपुर प्रेस क्लब की नेतृत्व सूची पर नजर डालिए कितने छत्तीसगढ़िया, छत्तीसगढ़ी भाषी पत्रकारों को मौका मिला?
हर बार इस संस्था में तमिल, तेलगु, बिहारी, गुजराती, मराठी, यूपी मप्र के आयातित पत्रकार ही शीर्ष पर रहे हैं? छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों के हित में उन्होंने क्या किया, यहां के जल जंगल जमीन की कितनी रक्षा अपनी कलम से कर पाए?
छत्तीसगढ़ युवा हो चुका है एक बड़े परिवर्तन के लिए अंगड़ाई ले रहा है छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ जैसी संस्था अब आम छत्तीसगढ़िया पत्रकारों के हितों की चिंता कर रहा है, प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्ररथ गर्व लंबे समय से प्रदेश की पत्रकारिता और फिल्म, संस्कृति, साहित्य को देख रहे हैं, वरिष्ठ पत्रकार और छत्तीसगढ़ी के एकमात्र डिजिटल चैनल संपादक नवीन देवांगन, लंबे अर्से से दूरदर्शन के रिपोर्टर रहे फिल्म निर्देशक डॉक्टर पुनीत सोनकर जैसे लोगों की टीम अब छत्तीसगढ़ के युवा पत्रकारों के हित में काम कर रहे हैं, उन्हें आम छत्तीसगढ़िया के लिए उनकी आम भाषा में खबर कहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं।
छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ अब लगभग सभी जिलों में स्थापित है और केवल छत्तीसगढ़िया हित ही नही बल्कि देश और दुनिया की खबरों को स्थानीय भाषा में सरलता से समझा बता रहे हैं।

संवाद और जनसंपर्क में छत्तीसगढ़ी भाषी पत्रकारों के अधिकार के लिए लड़ेंगे लड़ाई!
छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्ररथ गर्व ने संवाद और जनसंपर्क में छत्तीसगढ़ी भाषा में खबर दिखाने वाले पत्रकारों चैनलों संस्थाओं के अधिकार को लेकर मुख्यमंत्री से भेंट कर चर्चा करने की बात कही है, जरूरत पड़ने पर संवैधानिक रूप से आंदोलन करने का निर्णय CPM की प्रदेश कार्यकारणी ले सकती है।
प्रदेश महासचिव अब्दुल शमीम, सचिव परितोष, प्रेम सोनी और कोषाध्यक्ष अशोक साहू सहित लगभग 55 प्रदेश कार्यकारणी सदस्यों की बैठक बुलाई गई है जिसमें छत्तीसगढ़िया पत्रकारों की हितों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने रूपरेखा तैयार किया जाएगा।
CPM प्रदेश अध्यक्ष गजेंद्र रथ गर्व ने सभी छत्तीसगढ़ी भाषी पत्रकारों से आह्वान किया है की वे संगठन से जुडें और महासंघ का हिस्सा बनकर अपने हितों की रक्षा करें।
