छत्तीसगढ़ के सभी हित चिंतकों का एक साथ एक मंच पर आना जरूरी!
छत्तीसगढ़ में एक दुर्लभ फोटो तेजी के साथ वायरल हो रहा है, जिसके कई मायने निकाले जा रहे हैं, एक ओर छत्तीसगढ़िया समाज को एक करने मैदानी लड़ाई लड़ रहे अमित बघेल तो दूसरी ओर प्रदेश भर के वे लोग जो छत्तीसगढ़ को अब स्वायत्त प्रदेश के रूप में देखने की जद्दोजहद में हैं!

पंडित युवराज छत्तीसगढ़ी के कथा वाचक के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं और इसी काल में छत्तीसगढ़ी को सम्मान दिलाने भाषाई दर्जा दिलाने लड़ाई लड़ी जा रही है।
इस क्रम में वयोवृद्ध नंदकिशोर शुक्ल जी लड़ाई की लंबीपारी खेल चुके हैं और आज भी छत्तीसगढ़ी को राजकाज की भाषा बनाने के साथ प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बने इसलिए मैदान में डटे हैं, इसी क्रम में बिलासपुर की सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार, महिला क्रांति सेना प्रमुख लता राठौर भी दिल्ली दरबार के साथ ही हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी हैं।
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के तमाम
सेनानी भी इस लड़ाई में डटे हुए हैं और लगातार छत्तीसगढ़ की भाषाई पहचान को स्थापित करने आंदोलित हैं!
आम छत्तीसगढ़िया छत्तीसगढ़ी भाषा को अपनी अस्मिता का परिचय जब तक नहीं बनाएगी स्थानीयता मजबूत कैसे होगी?
छत्तीसगढ़ को स्वतंत्र पहचान पाए 25 साल होने जा रहे फिर भी इस प्रदेश की राजभाषा उतनी उन्नत नही हो पाई और न ही छत्तीसगढ़िया अस्मिता की पहचान बन पाई, छत्तीसगढ़ी महज आम छत्तीसगढ़िया को ठगने की भाषा बन कर रह गई है, चुनावी कार्यक्रमों में इसे आम जनता को लुभाने के उद्देश्य से बोला जाता रहा है।
मोदी जी ने पहले जय जोहार कहा, फिर दाई दीदी बाहिनी बोला…उसके बाद?
छत्तीसगढ़ी इस प्रदेश में हर पांच कोस में परिवर्तित होती है तो क्या वह भाषा के परिचय से बाहर हो जाती है, हर क्षेत्र की अपनी अपनी भाषाई बनावट है, छत्तीसगढ़ में भी है पर है तो छत्तीसगढ़ी ही!
आज जब क्षेत्रीयता की बयार बड़ी तेजी से फैल रही है तब यह बहुत ही जरूरी है की वे लोग जो इस काम के लिए जाने पहचाने हो चुके हैं उन्हें एक साथ एक मंच पर होना चाहिए, ताकि यह जनभावना बने की उनके नेतृत्वकर्ताओं की सोचा और विचारधारा अब एक साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
अमित बघेल अपने तेवर और एक बोलिया जुबान के लिए जाने जाते हैं, छत्तीसगढ़ और आम छत्तीसगढ़ियों के लिए उनका विचार स्पष्ट है, छत्तीसगढ़िया राज की बात और आम शोषित पीड़ित छत्तीसगढ़ियों के लिए उनकी पीड़ा दिखती है, लगभग दस वर्ष गैर राजनीतिक संगठन छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के नेतृत्वकर्ता रह कर राजनीतिक दल जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी तक का सफर तय कर चुके हैं और बेशक आने वाला समय आम छत्तीसगढ़िया राजनीति में स्थापित होगा!
छत्तीसगढ़ भावनाओं ईश्वरीय शक्ति और कथाओं से प्रभावित रहने वाले भोले भाले लोगों का ठीहा है शायद इसीलिए आए दिन यहां कथावाचकों की भीड़ रहती है, वहीं अब छत्तीसगढ़ी भाषी कथावाचक पंडित युवराज लगातार अपने आयोजनों के माध्यम से छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और स्थानीयता को मजबूत करने वाली बातें आम छत्तीसगढ़िया को बता सुना रहे हैं जो एक बड़े परिवर्तन के लिए बहुत जरूरी है।
छत्तीसगढ़ में मैं की भावना से आहत छत्तीसगढ़ियावादियों की संख्या, सबका अपना अपना छत्तीसगढ़ियावाद!
छत्तीसगढ़ पृथक राज्य निर्माण की पृष्टभूमि रचने वाली पहली संस्था छत्तीसगढ़ भातृ संघ ने आम छत्तीसगढ़िया को एकजुट करने पर इसे मेढक तौल जैसी कठिन बात कही थी तब शिक्षा और संचार क्रांति नहीं थी पर अब आम छत्तीसगढ़िया युवा इस बात से वाकिफ है की उनके प्रदेश में उनकी स्थिति कैसे बेहतर हो जिसके लिए उन्हें क्या करना है और इसी का परिणाम है की जो गैर राजनीतिक संगठन छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना कुछ साल पहले तक राजधानी और कुछ जिलों तक सिमटी थी अब प्रदेश के गांव गली चौराहों तक पहुंच चुकी है।
छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढ़ियों के भला चाहने वाले लोगों को एक मंच पर आना जरूरी: गजेंद्ररथ
छत्तीसगढ़िया पत्रकार महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष, पत्रकार गजेंद्ररथ गर्व एक दशक से CKS के लिए लिख, बोल रहे हैं आम जनों को स्थानीयता और भाषाई पहचान के लिए जागरूक कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ी को स्कूली शिक्षा में शामिल करने खुलेपांव प्रदेश नापते भूपेश सरकार ने भरोसा दिला कर पांव पर चप्पल तो धर दिए थे लेकिन उनकी सत्ता दोबारा न लौट सकी पर स्कूलों में छत्तीसगढ़ी एक विषय जरूर स्थापित हुआ, अब फिर से गजेंद्ररथ छत्तीसगढ़ी के लिए बड़ी लड़ाई लड़ने तैयारी कर रहे हैं, इस बार वे दिल्ली पदयात्रा कर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से छत्तीसगढ़ी को भाषाई पहचान और प्रदेश में राजकाज की भाषा बनाने मांग करेंगे!
किसी भी प्रदेश के लिए स्थानीय मूल्यों को आगे रखना, सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखना जरूरी है और अब छत्तीसगढ़ इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है आने वाला समय एक बड़े परिवर्तन का इशारा दे रहा है बस इस इशारे को समझ कर आम छत्तीसगढ़ियों को एकजुट, एकस्वर, एक सांस्कृतिक पहचान बनकर आगे आना होगा।
